Monday, 25 October 2021

वास्तु अनुसार घर के परदे के रंग कैसे लगाऐं

वास्तु के मुताबिक कैसे हों परदों के रंग वास्तु के मुताबिक, यह केवल दीवारों के रंग ही नहीं बल्कि कमरे में मौजूद सारे रंग हमें प्रभावित करते हैं. परदों के मुफीद रंग भी कमरे को सुकूनभरा बनाते हैं. आप ऑफ वाइट, वाइट, रोजी रेड इत्यादि रंग परदों के लिए चुन सकते हैं. ये रंग शांति और आराम से जुड़े होते हैं, जो बेडरूम के लिए शानदार माने जाते हैं. बेडरूम में काले रंग के परदे ना लगाएं. वास्तु के मुताबिक, लिविंग रूम के परदे आप पीले, हरे और नीले में चुन सकते हैं जबकि डाइनिंग रूम के लिए ग्रीन, पिंक और ब्लू रंग अच्छे रहेंगे. हरा रंग उम्मीद का प्रतीक है और सद्भाव और सेहत का प्रतिनिधित्व करता है. नीला रंग नई शुरुआत को दर्शाता है तो वहीं पिंक प्यार को. बाथरूम के परदे ग्रे, पिंक, वाइट और ब्लैक का मिश्रण हो सकते हैं. उत्तरमुखी कमरों में परदे हल्के हरे रंग के होने चाहिए. वास्तु के अनुसार उत्तर-पश्चिम की ओर मुंह वाले कमरों में सफेद रंग के परदे होने चाहिए. पश्चिममुखी कमरों में ग्रे रंग के परदे होने चाहिए. दक्षिण-पूर्व की ओर मुंह वाले कमरों में लाल या गुलाबी रंग के परदे होने चाहिए. उत्तर-पूर्व की ओर मुंह वाले कमरों में पीले रंग के परदे होने चाहिए. वास्तु के मुताबिक कैसी हो फ्लोरिंग वास्तु के अनुसार फर्श का रंग हल्का, पीला और तटस्थ रंगों में होना चाहिए. सफेद संगमरमर या ग्रेनाइट उपयुक्त हैं, क्योंकि वे शांतिपूर्ण वातावरण को बढ़ाते हैं. लकड़ी के फर्श का उपयोग घर के उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में भी किया जा सकता है. इसके अलावा, उत्तर-पूर्व दिशा में, फर्श के लिए नीले रंग के शेड का इस्तेमाल किया जा सकता है. किचन में ब्लैक फ्लोरिंग से बचें. हालांकि, दक्षिण-पूर्व दिशा में लाल या गुलाबी रंग का फर्श रखना सही है. दक्षिण-पश्चिम दिशा के कमरों में फर्श पीले रंग का होना चाहिए.
http://asthajyotish.in वास्तु के मुताबिक रंगों का महत्व रंग प्रतिनिधित्व लाल उत्साह, ताकत, भावनाएं और गर्मजोशी नीला सौंदर्य, संतोष, भक्ति, सत्य हरा प्रगति, सेहतबक्श, उपजाऊ, समृद्धि सफेद पवित्रता, खुलापन, निर्दोष, लग्जरी पीला आशावाद, खुलापन, अध्ययन, बुद्धिमत्ता नारंगी दृढ़ संकल्प, लक्ष्य, अच्छा स्वास्थ्य, आराम भूरा स्थिरता, संतुष्टि, आराम पर्पल ऐश्वर्य, लग्जरी, अनुग्रह, अभिमान अधीक जानकारी प्राप्त करने हेतु संपर्क करें ज्योतिष और वास्तु समाधान 🏠Vastu Guru_ Mk.✋ 👉WP. 9333112719

घर में भूलकर भी नहीं कराएं एसे रंग जो बर्बादी के कारण बने

घर में भूलकर भी न कराएं ये रंग आपके भाग्य का शत्रु बना दे।
http://asthajyotish.in एक्सपर्ट्स के मुताबिक लाइट रंग हमेशा अच्छे होते हैं। डार्क रंग जैसे लाल, ब्राउन, ग्रे और काला हर किसी को सूट नहीं आता। ये रंग अग्नि ग्रहों जैसे राहू, शनि, मंगल और सूर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। सेठी के मुताबिक लाल, गहरा पीला और काले रंग से परहेज करना चाहिए। आमतौर पर इन रंगों की तीव्रता काफी ज्यादा होती है। ये रंग आपके घर के एनर्जी पैटर्न को डिस्टर्ब कर सकते हैं। हालांकि अगर आपको लगता है कि घर में उत्साह और गर्मजोशी की कमी है तो आप घर के कुछ कोनों में लाल रंग करा सकते हैं. बेडरूम के लिए लाल का अत्यधिक इस्तेमाल आग की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है और इससे स्वभाव में गुस्सा पैदा हो सकता है. वास्तु के मुताबिक, घर के मालिकों को जरूरत से ज्यादा सफेद रंग नहीं कराना चाहिए क्योंकि यह अहंकार को बढ़ाता है. कार पार्किंग एरिया और गैरेज में घर के मालिकों को गहरे रंग नहीं कराने चाहिए. अधीक जानकारी प्राप्त करने हेतु संपर्क करें ज्योतिष और वास्तु समाधान 🏠Vastu Guru_ Mk.✋ 👉WP. 9333112719

Sunday, 24 October 2021

घर में कौन सा रंग शुभ रहेगा

 


किस कमरे में हो कौन सा रंग शुभ रहेगा

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विशेषज्ञों का कहना है कि आपके घर के हर कमरे में ऊर्जा, आकार और दिशा के मुताबिक रंगों की जरूरत होती है. आपके होम सेक्शन की रंग आवश्यकता उसके उपयोग के अनुसार होनी चाहिए. एस्ट्रोन्यूमरोलॉजिस्ट  ने कहा, ”घर में रहने वाले लोगों को कमरों के रंग चुनते वक्त इन बातों का ध्यान रखना चाहिए”.

मास्टर बेडरूम: दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और इसलिए इसमें नीला रंग करवाना चाहिए।  बेडरूम आराम करने की जगह है. इसलिए यह जरूरी है कि इस जगह में सकारात्मक प्रभामंडल हो. इसलिए बेहतर यही है कि इस जगह को आप सुखदायक टोन वाले हल्के और ठंडे रंगों से रंगें. वास्तु के मुताबिक, नीले रंग के फर्नीचर और दरवाजे के साथ ऑल वाइट कलर पैटर्न इस जगह के लिए सबसे मुफीद रहेगा. इसके अलावा, बेडरूम में कोई भी लाइट या पेस्टल शेड काम कर सकता है. भारी और गहरे रंगों से बचें क्योंकि इससे जगह में उदासी का अहसास हो सकता है.

गेस्ट रूम/ड्राइंग रूम: घर में आए रिश्तेदारों के लिए गेस्ट रूम/ड्राइंग रूम उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। इसलिए इस दिशा में अगर गेस्ट रूम है तो उसमें सफेद रंग होना चाहिए।

बच्चों का कमरा: उत्तर-पश्चिम उन बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ दिशा है, जो बड़े हो गए हैं और पढ़ाई करने के लिए बाहर जाते हैं। चूंकि उत्तर-पश्चिम दिशा पर चंद्रमा का राज है, इसलिए इस दिशा में स्थित बच्चों के कमरे में सफेद रंग कराना चाहिए।

किचन: दक्षिण-पूर्व दिशा किचन के लिए बेस्ट है, इसलिए किचन की दीवारों का रंग संतरी या लाल होना चाहिए. किचन आग का प्रतिनिधित्व करता है. लिहाजा गहरे रंग अच्छे रहेंगे. आप पीला रंग चुन सकते हैं. गहरे रंग जैसे गुलाबी मोहब्बत और गर्मजोशी को दर्शाते हैं जबकि भूरा रंग भी किचन के लिए मुफीद है क्योंकि यह संतुष्टि को दर्शाता है. अगर किचन कैबिनेट्स हैं तो लेमन यलो, संतरी रंग अच्छे रहेंगे क्योंकि ये ताजगी, स्वास्थ्य और सकारात्मकता को दिखाते हैं. फर्श के लिए, मोज़ेक, संगमरमर या सिरेमिक टाइलें चुनें. हल्के रंग – बेज, सफेद या हल्का भूरा फर्श के लिए अच्छे होते हैं. वास्तु की सिफारिशों के अनुसार, रसोई के स्लैब प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पत्थरों में सबसे अच्छे हैं, जिनमें ग्रेनाइट या क्वार्ट्ज शामिल हैं. नारंगी, पीले और हरे रंग रसोई के काउंटरटॉप्स के लिए अच्छा काम करते हैं.

बाथरूम: उत्तर-पश्चिम दिशा बाथरूम के लिए सबसे सही है और इसमें सफेद रंग होना चाहिए।

हॉल: आदर्श तौर पर हॉल नॉर्थ-ईस्ट या नॉर्थ वेस्ट दिशा में होना चाहिए और इसमें पीला या सफेद रंग करवाना चाहिए।

घर के बाहर का रंग:  मालिकों के मुताबिक होना चाहिए। श्वेत-पीला, अॉफ वाइट, हल्का गुलाबी या संतरी रंग सभी राशि के लोगों के लिए अच्छा होता है।

पूजा घर: का मुंह नॉर्थ ईस्ट की दिशा में होना चाहिए, ताकि सूर्य के अधिकतम प्रकाश का दोहन किया जा सके. पीला आपके घर के इस हिस्से के लिए सबसे उपयुक्त रंग है, क्योंकि इससे इस प्रक्रिया में आसानी होगी. इस जगह को अपने घर का शांत क्षेत्र बनाने के लिए आपको इस क्षेत्र में गहरे रंगों से भी बचना चाहिए।

मेन डोर/एंट्रेंस:  के लिए सॉफ्ट कलर्स का इस्तेमाल करें, जैसे वाइट, सिल्वर या वुड कलर. वास्तु के मुताबिक, गहरे रंग जैसे काला, लाल और गहरे नीले का इस्तेमाल न करें. ध्यान रहे कि मेन एंट्रेंस हमेशा घड़ी के घूमने की दिशा और अंदर की ओर खुलने चाहिए.

स्टडी रूम: अगर आपका ऑफिस-होम है तो वास्तु के मुताबिक ग्रीन, ब्लू, क्रीम और वाइट जैसे रंगों का इस्तेमाल करें. लाइट कलर्स से कमरा बड़ा सा लगता है. गहरे रंगों से बचें क्योंकि इससे जगह में उदासीनता बढ़ती है. आपके होम ऑफिस के लिए सोने, पीले, भूरे और हरे रंग के हल्के रंग, एक स्थिर कामकाजी माहौल सुनिश्चित करते हैं और उत्पादकता बढ़ाते हैं.

बालकनी/बरामदा: वास्तु के मुताबिक, बालकनी नॉर्थ या ईस्ट डायरेक्शन में होनी चाहिए. बालकनी में ब्लू, क्रीम और ग्रीन व पिंक के हल्के शेड्स कराएं. यही वो जगह होती है, जहां से लोग बाहरी दुनिया से कनेक्ट होते हैं. इसलिए गहरे रंगों से बचना चाहिए.

गैरेज: वास्तु के मुताबिक, गैरेज नॉर्थ वेस्ट दिशा में होना चाहिए. इसमें आप सफेद, पीला, ब्लू या कोई और लाइट शेड करा सकते हैं.

 

कमरावास्तु के मुताबिक रंगवास्तु के मुताबिक रंग
मास्टर बेडरूमनीलालाल के गहरे शेड्स
गेस्ट रूमसफेदलाल के गहरे शेड्स
ड्राइंग रूम/लिविंग रूमसफेदगहरे रंग
डाइनिंग रूमग्रीन, ब्लू और यलोग्रे
सीलिंगवाइट या फिर ऑफ वाइटब्लैक और ग्रे
किड्स रूमसफेदगहरा नीला और लाल
किचनसंतरी या लालडार्क ग्रे, ब्लू, ब्राउन और ब्लैक
बाथरूमसफेदकिसी भी रंग का गहरा शेड
हॉलपीला या सफेदडीप शेड में कोई भी रंग
पूजा घरपीलालाल
घर का बाहरी हिस्सापीले-सफेद, ऑफ-व्हाइट, हल्का मौवेकाला
मेन डोर/एंट्रेंससफेद, सिल्वर या लकड़ी का रंगलाल और डीप यलो
स्टडी रूमहल्का हरा, नीला, क्रीम या सफेदब्राउन और ग्रे
बालकनी/बरामदानीला, क्रीम, गुलाबी और हरे रंग के हल्के शेड्सग्रे, ब्लैक
गैरेजसफेद, पीला, नीलाब्लैक, ब्राउन

 

दीवार के वो रंग जो सकारात्मक ऊर्जा को पैदा करते हैं

अगर आप ऐसे दीवार के रंग ढूंढ रहे हैं, वो घर में सकारात्मकता लाते हैं, वो इन कलर पैलेट को चुन सकते हैं.

पीला

पीला रंग संचार, आत्म-सम्मान और शक्ति से जुड़ा होता है.

बैंगनी

बैंगनी स्थिरता के लिए एक शानदार वातावरण बनाता है. आरामदायक और सुकून भरी नींद के लिए आप लैवेंडर जैसे हल्के रंगों का चुनाव कर सकते हैं.

हरा

हरा रंग तनाव को शांत करता है। यह लकड़ी के तत्व से भी जुड़ा है और इसमें तनाव और डिप्रेशन को दूर करने के गुण हैं.

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दिशाओं के मुताबिक आपके घर के रंग दिशाओं और घर के मालिक की जन्मतिथि के मुताबिक तय किए जाने चाहिए। चूंकि हर दिशा का अपना एक खास रंग होता है, इसलिए हो सकता है, यह घर के मालिक से मेल न खाए। इसके लिए घर के मालिकों को वास्तु शास्त्र में लिखी बुनियादी गाइडलाइंस का पालन करना चाहिए। दिशा मुफीद रंग नॉर्थ-ईस्ट हल्का नीला पूर्व सफेद या हल्का नीला दक्षिण-पूर्व यह दिशा आग से जुड़ी है। इसलिए संतरी, गुलाबी या सिल्वर रंग ऊर्जा को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है उत्तर हरा और पिस्ता ग्रीन उत्तर-पश्चिम यह दिशा हवा से जुड़ी है। इसलिए सफेद, हल्का ग्रे और क्रीम रंग इसके लिए परफेक्ट है पश्चिम यह जगह ‘वरुण’ (जल) की है, इसलिए नीला और सफेद सर्वश्रेष्ठ है दक्षिण-पश्चिम आड़ू रंग, गीली मिट्टी का रंग, बिस्किट कलर और लाइट ब्राउन कलर दक्षिण लाल और पीला घर के मालिकों को काला, लाल और पिंक रंग चुनने से पहले अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि ये रंग हर किसी को सूट नहीं करते।

Saturday, 16 October 2021

Diwali 2021 : कब है दीपावली पूजन और शुभ मुहूर्त

कब है दीपावली पूजन और शुभ मुहूर्त

2021 में।


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Diwali 2021: हिंदू धर्म में दिवाली के त्योहार का विशेष महत्व है. हिंदू कैलेंडर और पौराणिक कथाओं के अनुसार, दिवाली कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन मनाई जाती है. इस साल कार्तिक अमावस्या 4 नवंबर 2021 को है. लोगों को हर साल दिवाली (Diwali 2021) के त्योहार का बेसब्री से इंतजार रहता है.

दशहरा (Dussehra 2021) खत्म होते लोग दिवाली की तैयारी में लग गए हैं. दशहरा के पर्व से 20 दिन बाद दिवाली का पर्व मनाया जाता है. दिवाली का त्यौहार लक्ष्मी जी को समर्पित है. इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है. ऐसे में लक्ष्मी पूजन के लिए शुभ मुहूर्त (Diwali Shubh Muhurt) की जानकारी होनी बहुत जरूरी है.

मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का समय

हिंदू कैलेंडर Diwali Muhurt in Calendar) के अनुसार, मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का समय शाम 06 बजकर 09 मिनट से रात 08 बजकर 20 मिनट तक का माना जा रहा है. पूजा की अवधि- 1 घंटे 55 मिनट की होगी. वहीं प्रदोष काल- शाम 17:34:09 बजे से रात 20:10:27 बजे तक जबकि, वृषभ काल- शाम 18:10:29 बजे से रात 20:06:20 बजे तक माना जा रहा है.

दिवाली पर निशिता काल मुहूर्त

निशिता काल- रात 23:39 बजे से 5 नवंबर रात 00:31 बजे तक
सिंह लग्न- 5 नवंबर रात 00:39 बजे से तड़के 02:56 बजे तक

दिवाली शुभ चौघड़िया मुहूर्त

सुबह का मुहूर्त: 06:34:53 बजे से 07:57:17 बजे तक
सुबह का मुहूर्त: 10:42:06 बजे से दोपहर 14:49:20 बजे तक
सायंकाल मुहूर्त: शाम 16:11:45 बजे से रात 20:49:31 बजे तक
रात्रि मुहूर्त: रात 24:04:53 बजे से रात 01:42:34 बजे तक

एक ही राशि में होंगे चार ग्रह

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस साल दिवाली पर सूर्य, मंगल, बुध और चंद्रमा एक ही राशि पर विराजमान होंगे. माना जा रहा है कि तुला राशि में इन चारों ग्रहों के रहने से शुभ परिणाम देखने को मिलेंगे. बता दें कि तिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा, मंगल को ग्रहों का सेनापति, बुध को ग्रहों का राजकुमार और चंद्रमा को मन का कारक माना गया है.

लक्ष्मी पूजन की विधि

  • दिवाली की सफाई बहुत जरूरी है. अपने घर के हर कोने को साफ करने के बाद गंगाजल छिड़कें.
  • लकड़ी की चौकी पर लाल सूती कपड़ा बिछाएं और बीच में मुट्ठी भर अनाज रखें.
  • कलश (चांदी/कांस्य का बर्तन) को अनाज के बीच में रखें.
  • कलश में पानी भरकर एक सुपारी (सुपारी), गेंदे का फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डाल दें. -कलश पर 5 आम के पत्ते गोलाकार आकार में रखें.
  • केंद्र में देवी लक्ष्मी की मूर्ति और कलश के दाहिनी ओर (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में भगवान गणेश की मूर्ति रखें.
  • एक छोटी थाली लें और चावल के दानों का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं, हल्दी से कमल का फूल बनाएं, कुछ सिक्के डालें और मूर्ति के सामने रखें.
  • अब देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को तिलक करें और दीपक जलाएं. कलश पर भी तिलक लगाएं.
  • अब भगवान गणेश और लक्ष्मी को फूल चढ़ाएं.
  • नारियल, सुपारी, पान का पत्ता माता को अर्पित करें.
  • देवी की मूर्ति के सामने कुछ फूल और सिक्के रखें.
  • थाली में दीया लें, पूजा की घंटी बजाएं और लक्ष्मी जी की आरती करें.
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Monday, 11 October 2021

करवा चौथ व्रत कैसे करें सरल विधि

 करवा चौथ व्रत कैसे करें सरल विधि और सामग्री


स्त्रियां इस व्रत को पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप रखा जाता है। भले ही इन मान्यताओं में थोड़ा-बहुत अंतर होता है, लेकिन सार सभी का एक होता है पति की दीर्घायु।  

करवा चौथ
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जानकारों के मुताबिक महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आ पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।
शास्त्र के अनुसार किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है। करवा चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि-     
👉करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री
कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे।
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सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें व शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का  विधान है, क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नाानादि करने के बाद संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।
👉करवा चौथ पूजन विधि
1. प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।
2. व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।
3. व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के बाद संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।
4. प्रात: पूजा के समय मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ करें।
मंत्र: 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
5. घर के मंदिर की दीवार पर गेरू से फलक बनाकर चावलों को पीसे। फिर इस घोल से करवा चित्रित करें। इस रीती को करवा धरना कहा जाता है।
6. शाम के समय, मां पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसार पर बिठाए।
7. मां पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।
8. भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें।
8. सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें।
9. सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें।
10. पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।
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🙏जय माता दी 🙏

Saturday, 2 October 2021

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र

 सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्: 

नवरात्र में करें इसका पाठ, मिलेगा धन, विद्या, यश, सुख-शांति और सब कुछ


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  👉एक पाठ से संपूर्ण दुर्गा सप्तशती जैसा फल

एक पाठ से संपूर्ण दुर्गा सप्तशती जैसा फल


श्री दुर्गा सप्तशती में से हम आपको एक एसा पाठ बता रहे हैं, जिसके करने से आपकी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इस पाठ को करने के बाद आपको किसी अन्य पाठ की आवश्यकता नहीं होगी। यह पाठ है..सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्।  समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें। श्री दुर्गा सप्तशती में यह अध्याय सम्मिलित है। यदि समय कम है तो आप इसका पाठ करके भी श्रीदुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जैसा ही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। नाम के अनुरूप यह सिद्ध कुंजिका है। जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए। भगवती आपकी रक्षा करेंगी।


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा

भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।


क्यों है सिद्ध

इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है। इसमें स्वर व्यंजन की ध्वनि है। योग और प्राणायाम है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए

संक्षिप्त मंत्र

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ( सामान्य रूप से हम इस मंत्र का पाठ करते हैं लेकिन संपूर्ण मंत्र केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में है)

 

संपूर्ण मंत्र यह है

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

 

कैसे करें

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।

1. संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।

2. जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5. 7. 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें। कभी एक कभी दो कभी तीन न रखें।

3. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।

4. प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।

5. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।

सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय

1. रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।

2. रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें।


आसन

लाल आसन पर बैठकर पाठ करें


दीपक

घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें। अर्थात दोनों दीपक जलाएं

 

किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं

1.विद्या प्राप्ति के लिए....पांच पाठ ( अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)

2. यश-कीर्ति के लिए.... पांच पाठ ( देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)

3. धन प्राप्ति के लिए....9 पाठ ( सफेद तिल से अग्यारी करें)

4.मुकदमे से मुक्ति के लिए...सात पाठ ( पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)

5. ऋण मुक्ति के लिए....सात पाठ ( जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)

6. घर की सुख-शांति के लिए...तीन पाठ ( मीठा पान देवी को अर्पण करें)

7.स्वास्थ्यके लिए...तीन पाठ ( देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)

8.शत्रु से रक्षा के लिए..., 3, 7 या 11 पाठ ( लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)

9. रोजगार के लिए...3,5, 7 और 11 ( एच्छिक) ( एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख लें)

10.सर्वबाधा शांति- तीन पाठ ( लोंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें।


( पाठ में अधिक समय नहीं लगेगा। पांच या सात मिनट में पाठ पूरा हो जाता है)

सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्

सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥

अथ मन्त्रः

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः

ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा

इति मन्त्रः॥

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥२॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ॥४॥

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे ॥

इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥

यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥

इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती

संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।।

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Friday, 1 October 2021

मां दुर्गा शक्ति पूजा विधि

ऐसे करें मां दुर्गा की पूजा



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किसी भी देवी देवता की पूजा में विधि विधान का ध्यान रखा जाता है। आइए जानते हैं मां दुर्गा की पूजा कैसे करें-

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दुर्गा पूजन सामग्री-

दुर्गा पूजन से पहले यह सामग्री जुटा लें-

पंचमेवा, रोली, सिंदूर, कलावा, पंच​मिठाई, रूई, एक नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, फूल, 5 सुपारी, लौंग, 5 पान के पत्ते, घी, चौकी, कलश, आम के पल्लव, समिधा, कमल गट्टे, कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, ​तिल, प्र​तिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।

पंचामृत बनाएं- दूध, दही, घी, शहद, शर्करा को एक में मिलाकर तैयार करें।



ऐसे करें पूजन

दुर्गा प्रतिमा के सामने आसनी पर बैठ जाएं। बिना आसन, चलते-फिरते और पैर फैलाकर पूजा नहीं करना चाहिए। इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें -

"ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥"

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगाएं फिर आचमन करें –

ऊं केशवाय नम: ऊं नारायणाय नम:, ऊं माधवाय नम:, ऊं गो​विन्दाय नम:|


फिर हाथ धोएं, फिर आसन शुद्धि मंत्र बोलें -

ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।

त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

 

इसके पश्चात अनामिका उंगली से अपने मत्थे पर चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-

 चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,

आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।

 

संकल्प- हाथ में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें –

ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते(वर्तमान संवत), तमेऽब्दे क्रोधी नाम संवत्सरे उत्तरायणे (वर्तमान) ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे (वर्तमान) मासे (वर्तमान) पक्षे (वर्तमान) तिथौ (वर्तमान) वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।


इस मंत्र के साथ करें पूजा

माता दुर्गा की आराधना के समय ‘‘ऊँ दुं दुर्गायैनमः'' मंत्र का जप करें।



नारियल का भोग लगाएं


माता दुर्गा की पूजा के दौरान नारियल का भोग जरूर लगाना चाहिए। मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने नारियल चढ़ाएं । कुछ देर बाद नारियल फोड़ दें। इसके बाद देवी को अर्पित कर भक्तों में बांट दें।

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कलश स्थापन संकल्प गणेश जी के साथ शुरुआत करें

कलश पूजन विधि सरलीकृत संस्कृत भाषा में


समयावधि - लगभग 15 मिनट

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यहाँ पर श्रीगणेश पूजन की संक्षिप्त विधि सरलीकृत संस्कृत भाषा में दी जा रही है।

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नोट - संस्कृत व्याकरण के नियमों को ग्राह्य करने की अपेक्षा उच्चारण सरलता से व शुद्धता से हो सके, यह प्रयास किया है। इसकी सहायता से आप स्वयं ही गणेश पूजन पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए कर सकेंगे।


पूजन शुरू करने के पूर्व अवश्य पढ़े👉

पूजनकर्ता स्नान करके गणपति पूजन के लिए बैठें।

भगवान गणपति के पूजन का अधिकार सभी वर्गों के लोगों को है।

पूजन पूर्व की दिशा में मुँह करके करें।

पूजन सामग्री की सूची पृथक से दी गई है, वहाँ पर देखें।

पूजन शुरू करने के पूर्व समस्त पूजन सामग्री अपने आसपास इस तरह जमा लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न आए।

पूजन में किन-किन सावधानियों को रखना आवश्यक है, इसकी जानकारी भी पृथक से दी गई है, वहाँ से प्राप्त करें।

पूजन श्री गणेशजी की प्रतिमा पर किया जाता है।


श्री गणेशजी की प्रतिमा न होने पर :-

एक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर, श्री गणेश की भावना करके, पाटे पर अन्न बिछाकर उस पर स्थापित किया जाता है। सुपारी पर ही संपूर्ण पूजन किया जाता है।


श्रीगणेश की मृत्तिका (मिट्टी) की मूर्ति का पूजन कर रहे हों, तो :-

उस मूर्ति के स्थान पर स्नान, पंचामृत स्नान कराने के लिए एक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर, उस सुपारी को गणेशजी की प्रतिमा के सामने स्थापित कर दें। स्नान, पंचामृत स्नान, अभिषेक इत्यादि कर्म उस सुपारी पर ही किए जाते हैं, मृत्तिका की गणेश प्रतिमा पर नहीं।


पूजन प्रारंभ

पूजन प्रारंभ करने हेतु शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करके, इष्ट देवता की दाहिनी दिशा में अक्षत बिछाकर उस पर रखे दें। दीपक प्रज्ज्वलित कर, हाथ धो लें।


दीप पूजन :- (हाथ में गंध एवं पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलकर दीपक पर गंध-पुष्प अर्पित करें)


मंत्र :- 'ॐ दीप ज्योतिषे नमः'

प्रणाम करें।

(उक्त मंत्र बोलकर गंध व पुष्प, दीपक पर अर्पित करें)

आचमन :- (अब निम्न मंत्र बोलते हुए तीन बार आचमन करें-

ॐ केशवाय नमः स्वाहा (आचमन करें)

ॐ नारायणाय नमः स्वाहा (आचमन करें)

ॐ माधवाय नमः स्वाहा (आचमन करें)

(निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें)

ॐ हृषीकेशाय नमः हस्तम्‌ प्रक्षालयामि

तत्पश्चात तीन बार प्राणायाम करें।


पवित्रकरण :- (प्राणायाम के बाद अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर निम्न मंत्र बोलते हुए जल छिड़कें)- 'ॐ अपवित्रह पवित्रो वा सर्व-अवस्थाम्‌ गतो-अपि वा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरी-काक्षम्‌ स बाह्य-अभ्यंतरह शुचि-हि॥

ॐ पुण्डरी-काक्षह पुनातु।'


(पश्चात्‌ निम्न मंत्रों का पाठ करें)-

स्वस्तिवाचन : स्वस्ति न इन्द्रो वृद्ध-श्रवाहा स्वस्ति नह पूषा विश्व-वेदाहा।

स्वस्ति नह-ताक्ष्‌-र्यो अरिष्ट-नेमिति स्वस्ति नो बृहस्पतिहि-दधातु॥

द्यौहो शन्ति-हि-अन्तरिक्ष (गुं) शान्तिर्-हि शान्तिहि-आपह।

शान्ति हि ओषधयह्‌ शान्तिहि।

वनस्‌-पतयह-शान्तिहि विश्वे देवाहा शान्तिहि ब्रह्म शान्तिहि सर्व (गुं)

शान्ति हि एव शान्तिहि सा मा शान्ति हि- ऐधि॥

यतो यतह समिहसे ततो न अभयम्‌ कुरु।

शम्‌ नह कुरु प्रजाभ्योअभयम्‌ नह पशुभ्यहा॥

सुशान्तिहि भवतु ।

श्रीमन्‌ महागण अधिपतये नमह।

लक्ष्मी-नारायणाभ्याम्‌ नमह। उमामहेश्वराभ्याम्‌ नमह।

मातृ पितृ चरण कमलैभ्यो नमह।

इष्ट-देवताभ्यो नमह। कुलदेवताभ्यो नमह।

सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमह। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमह।

सुमुखह एक-दन्तह च। कपिलो गज-कर्णकह।

लम्बोदरह-च विकटो विघ्ननाशो विनायकह॥1॥

धूम्रकेतुहु-गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननह।

द्वादश-एतानि नामानि यह पठेत्‌ श्रृणुयात-अपि॥2॥

विद्या-आरम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।

संग्रामे संकटे च-एव विघ्न-ह-तस्य न जायते॥3॥

वक्रतुण्ड महाकाय कोटि-सूर्य-समप्रभ।

निर-विघ्नम्‌ कुरु मे देव सर्व-कार्येषु सर्वदा॥4॥


संकल्प :

(दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले :)

'ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे ---*--- नगरे ---**--- ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम्‌ तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम्‌ शुभ पुण्य तिथौ -- +-- गौत्रः --++-- अमुक शर्मा, वर्मा, गुप्ता, दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन्‌ महागणपति प्रीत्यर्थम्‌ यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।''

इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।

👉

नोट : ---*--- यहाँ पर अपने नगर का नाम बोलें ---**--- यहाँ पर अपने ग्राम का नाम बोलें ---+--- यहाँ पर अपना कुल गौत्र बोलें ---++--- यहाँ पर अपना नाम बोलकर शर्मा/ वर्मा/ गुप्ता आदि बोलें


गणपति पूजन प्रारंभ

आवाहन

नागास्यम्‌ नागहारम्‌ त्वाम्‌ गणराजम्‌ चतुर्भुजम्‌।

भूषितम्‌ स्व-आयुधै-है पाश-अंकुश परश्वधैहै॥

आवाह-यामि पूजार्थम्‌ रक्षार्थम्‌ च मम क्रतोहो।

इह आगत्व गृहाण त्वम्‌ पूजा यागम्‌ च रक्ष मे॥

ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धिसहिताय गण-पतये नमह,

गणपतिम्‌-आवाह-यामि स्थाप-यामि।

(गंधाक्षत अर्पित करें।)


प्रतिष्ठापन

आवाहन के पश्चात देवता का प्रतिष्ठापन करें-

अस्यै प्राणाहा प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाह क्षरन्तु च।

अस्यै देव-त्वम्‌-अर्चायै माम-हेति च कश्चन॥

ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहित-गणपते सु-प्रतिष्ठितो वरदो भव।


आसन अर्पण

इसके बाद निम्नलिखित मंत्र पढ़कर पुष्प अर्पित करें-

ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, आसनम्‌ समर्पयामि।


पाद्य, अर्ध्य, आचमनीय, स्नानीय, पुर-आचमनीय-अर्पण :-

मंत्र :- ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, एतानि पाद्य,ऽर्ध्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनर-आचमनीययानि समर्पयामि ।'

(उक्त मंत्र बोलकर जल छोड़ दें)


पञ्चामृत स्नान

(पश्चात्‌ नीचे लिखे मंत्र को पढ़कर पंचामृत से गणपति देव को स्नान कराएँ)-


ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, पंचामृत-स्नानम्‌ समर्पयामि।

पंचामृत-स्नान-अन्ते शुद्ध-उदक-स्नानम्‌ समर्पयामि।


शुद्धोदक स्नान

पश्चात्‌ शुद्ध जल से स्नान कराएँ।


ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्‌, शुद्ध-उदक स्नानम्‌ समर्पयामि।


वस्त्र-उपवस्त्र समर्पण

ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्‌, वस्त्रम्‌-उपवस्त्र समर्पयामि।


यज्ञोपवित समर्पण

ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, यज्ञो-पवीतम्‌ समर्पयामि।


गन्ध व अक्षत

ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्‌, गन्धम्‌ समर्पयामि।

ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, अक्षतान्‌ समर्पयामि।


पुष्पमाला एवं पुष्प

ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, पुष्पमालाम्‌ समर्पयामि।


दूर्वांकुर

ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, दूर्वांकुरान्‌ समर्पयामि ॥


सुगंधित धूप

ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, धूपम्‌ आघ्रापयामि ।


दीप-दर्शन

ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, दीपं दर्शयामि । (हाथ धोलें)


नैवेद्य-निवेदन

विभिन्न नैवेद्य में मोदक, ऋतु के अनुकूल उपलब्ध फल अर्पित करें। नैवेद्य वस्तु का पहले शुद्ध जल से प्रोक्षण करें। धेनु-मुद्रा दिखाकर देवता के सम्मुख स्थापित करें। निम्नांकित मंत्र बोलें :-

शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च ।

आहारम्‌ भक्ष्य-भोज्यम्‌ च नैवेद्यम्‌ प्रति-गृह्यताम्‌ ॥

ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, नैवेद्यम्‌ मोदक-मयम्‌ ऋतुफलानि च समर्पयामि ।

ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, आचमनीयम्‌ मध्ये पानीयम्‌ उत्तरा-पोशनम्‌ च समर्पयामि ।


अखंड फल (नारियल)-दक्षिणा अर्पण

ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह, दक्षिणा व नारिकेल-फलम्‌ समर्पयामि।


नीराजन (आरती)


ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है।

कर्पूर नीराजन आपको समर्पित है।


(हाथ जोड़कर प्रणाम करें, आरती लेने के पश्चात हाथ अवश्य धोएँ)

ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्‌, कर्पूर-नीराजनम्‌ समर्पयामि॥


पुष्पाञ्जलि समर्पण

ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्‌, मन्त्र-पुष्प-अंजलि समर्पयामि।


प्रदक्षिणा व क्षमाप्रार्थना

यानि कानि च पापानि ज्ञात-अज्ञात-कृतानि च।

तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिण-पदे पदे॥

आवाहनम्‌ न जानामि न जानामि तवार्चनाम्‌ ।

यत्‌-पूजितम्‌ मया देव परि-पूर्णम्‌ तदस्तु मे ॥

अपराध सहस्त्राणि-क्रियंते अहर्नीशं मया ।

तत्‌सर्वम्‌ क्षम्यताम्‌ देव प्रसीद परमेश्वर ॥


पूजाकर्म समर्पण

अनया पूजया सिद्धि बुद्धि सहिता । महागणपति प्रियताम्‌ न मम्‌ ॥

ॐ ब्रह्मार्पणमस्तु । ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ऊँ आनंद !!!

(इति श्रीगणेश पूजन विधि संपूर्णम्‌)

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