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Tuesday, 13 September 2022
केंद्र भाव, पनफर भाव, एपोकलिक भाव के कुंडली में गुण और अवगुण
भाव और उनका महत्व
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◾ आत्मा बर्बर हो या सभ्य, कमजोर हो या ताकतवर, बुद्धिमान हो या मूर्ख, वह शरीर के ही माध्यम से काम करती है।
◾ राशियो मे ग्रह की स्थति बाह्य जगत की घटना और संयोग की अपेक्षा, आतंरिक शक्ति व गुण के लिए अधिक मत्वपूर्ण है।
◾ राशि और भावो की विशिष्टता आत्मा की उम्र अनुसार परवर्तित होती रहती है।
◾ ग्रह Planets राशि और भाव के अलावा अस्थायी व्यक्तित्व और भौतिक शरीर की अपेक्षा व्यक्तिगत आध्यात्मिक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते है।
आत्म विकास के तीन स्तर है।
1. तरुण और अनुभव हीन आत्मा = यह बारह भावो मे थोपा गया कार्य करती है। यह स्वयम मे अल्प कार्य कर सकती है।
2. बलवान और अनुभव युक्त आत्मा = यह अपने गुण और संकाय रखती है। जो मुख्य रूप से राशियो की स्थिति से व्यक्त होती है।
3. राशियो के अलावा ग्रह मानव के सर्वोत्तम विकास का प्रतिनिधित्व करते है।
➤ राशि अनुरूप भाव भी त्रियुग्म और चतुयुग्म होते है।
त्रियुग्म राशि स्वभाव के नाम और भाव त्रियुग्म के नाम अलग अलग है।
चर (मेष, कर्क, तुला, मकर) केंद्र 1, 4, 7, 10 Angular
स्थिर (वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ) फणफर 2, 5, 8, 11 Succedent
द्विस्भाव (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) आपोक्लिम 3, 6, 9, 12 Cadent
चतुयुग्म मे राशि और भाव के नाम समान है।
अग्नि
1, 5, 9
पृथ्वी 2, 6, 10
वायु 3 7, 11
जल 4, 8, 12
➤ वृत्त के लम्बवत दो भाग दिन और रात है। लग्न यानि पूर्वी क्षितिज से सप्तम भाव अर्थात पश्चिमी क्षितिज तक अर्थात 1,2,3,4,5,6 तक दिन और सातवे भाव से बाहरवे भाव तक अर्थात 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक रात्रि है।
➤ दिन वाला अर्धवृत्त अभिव्यक्ति या प्रस्फुटन, अनावरण या प्रकाश मे लाना, सृजन, सार्वजनिकता, शक्ति मन्वन्तर का द्योतक है। रात्रि वाला अर्द्धवृत्त संवृत्ति या आश्रय, विलम्बता, वापसी, विघटन, प्रलय का द्योतक है।
➤ इसी प्रकार क्षितिजवत उदय और अस्त दो भाग है। कोई भी पिंड चतुर्थ से दशम तक 5 6 7 8 9 10 भाव में हो, तो उदित कहलाता है और कोई भी पिण्ड 10 11 12 1 2 3 भाव मे हो, तो अस्त या अनुदित कहलाता है।
➧ भावो अनुसार उदयास्त और ग्रहो की गति अनुसार उदयास्त, मे भ्रमित नही होना चाहिये क्योकि दोनो अलग अलग घटनाए है।
➤ पूर्वी अर्द्धवृत्त या उदित वाला भाग स्वयम, अहंकारवाद, निश्चयीकरण, दूसरो से अलग, संकायो या शक्तियो के लाभ का द्योत्तक है। पश्चिमी अर्द्धवृत्त या अस्त या अनुदित वाला भाग स्वयं की कमी, पेचीदगी या अविकसितता शेष जगत से मित्रता या शत्रुता, संघ या एकता, परोपकारिता का द्योतक है।
➤ लम्बवत और क्षितिजवत दोनो चार वृत्त खण्ड बनाते है। इनमे लग्न की नोक (दन्ताग्र) सूर्योदय बिन्दु है, दशम भाव का नोक दोपहर है, सप्तम भाव का नोक सूर्यास्त बिन्दु है, चतुर्थ भाव की नोक (कस्प) मध्यरात्रि है।
➤ ये चार बिन्दु सूर्य से सम्बंधित है लेकिन अन्य ग्रहो पर भी यही सिद्धान्त लागू होता है। जब ग्रह उदित हो या उदय हो रहा हो, तब वह आविर्भाव (अभिव्यक्ति) मे अलग स्वयम बाहर आता है। जब ग्रह पराकाष्ठा की स्थिति मे हो अर्थात दशम मे हो, तब वह अभिव्यक्ति का मध्य अवस्था मे होता है। जब वह अस्त हो रहा हो, तब उसका अलगाव कम होता है और वह संयोजन के शुरुआत मे होता है। जब ग्रह निम्न मध्यान्ह (मध्यरात्रि) अर्थात चतुर्थ पर होता है, तब अभिव्यक्ति से पूरा बाहर होता है।
➤ वृत्त का चौगुना विभाजन अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल के चार त्रियुग्म देता है। जब समभुज त्रिकोण वृत्त के अंदर चिन्हित किया जाय तब चर या राजसिक, स्थिर या तामसिक, द्विस्वभाव या राजसिक राशियो का चतुयुग्म परिणाम होता है।
भावो के प्रभाव
केन्द्र या कोण = 1, 4, 7, 10 जन्मांग मे सबसे पहले महत्व पूर्ण है। केन्द्र भावो का प्रभाव चर राशियो के सामान राजसिक गुणो वाले है। प्रकट और ठोस करने से सम्बंधित है और खुले मे बाहर लाते है। अव्यक्त व्यक्तित्व की सभी वस्तुओ या बातो का अनावरण और अभिव्यक्त करते है। इन भावो से सम्बंधित ग्रह और राशि द्वारा व्यक्त सभी तथ्यो का अनावरण और प्रकटीकरण करते है।
प्रथम भाव : इसे लग्न भी कहते है। अपने भाव मे केवल व्यक्तिगत है और इसकी शक्ति की अभिव्यक्ति आध्यात्म शक्ति पर निर्भर करती है। यहा आत्मा या तो प्रतिबंधित या अभिवर्धित अर्थ मे प्रबल है।
दशम भाव : दशम भाव के प्रभाव प्रथम भाव जैसे ही होते है। लेकिन आत्म या स्वयं की प्रतिभा के लिये व्यापक क्षेत्र प्रदान किया जाता है।
सप्तम भाव : दूसरे अर्थ मे लिया गया गैर आत्म के अनुभव से सम्बंधित है। मित्र, सहभागी, भागीदार आदि या तो प्रेम या नफरत, या सहायता या होड़ सभी जिनके हित जातक से मिश्रित हो, सातवे भाव से सम्बन्धित है।
चतुर्थ भाव : चौथा भाव न तो व्यक्तिगत और न ही निजी अर्थ मे है। यहा अलगाव या तो नष्ट या निष्प्रदीप हो जाता है।
फणफर = 2, 5, 8, 11 भाव फणफर कहलाते है। ये इच्छा, भावना, भावुकता और तामसिक गुणो से सम्बंधित है। ये उतने खुले और कार्रवाही से भरे नही है जितने केन्द्र भाव है। फणफर भावो का प्रभाव स्थिर राशियों के सामान है। द्वितीय और पंचम भाव अधिक अनुदार और इनके प्रभाव आठवे और ग्यारहवे की अपेक्षा कम खुले है। आठवा और ग्यारहवा भाव कार्रवाही मे इच्छा को अधिक बाहरी व्यक्त करते है।
आपोक्लिम = 3, 6, 9, 12 भाव आपोक्लिम कहलाते है। ये मानसिक है और विचार द्वारा कार्रवाही और इच्छा के पथ प्रदर्शन व निर्देशन को व्यक्त करते है। आपोक्लिम भावो का प्रभाव द्विस्वभाव राशियो के समान है।
तृतीय और नवम भाव पूर्णतया बौद्धिक और धनात्मक होता है। ये कई और लाभ देते है। यदाकदा एक ही समय पर दो या दो से अधिक गतिविधिया होती है।
छठा और बारहवा भाव श्रमिको और व्यवसायियो से सम्बंधित है। ये भाव अधिक शांत आरक्षित, धीमी गति, अल्प महत्वाकांक्षी और स्वतंत्र है। इनमे उत्पन्न घटना या तो व्यक्तिगत या निजी या अधितर रहस्यमय और गोपनीयता से घिरी होती है।
ग्रहो और राशियो का भावो से सम्बन्ध
भाव, भौतिक शरीर के जीवन की सघन अभिव्यक्ति करते है। समान ग्रह और राशि इनके महत्व मे या तो वृद्धि या न्यूनता कर सकते है। कोई भी राशि भावो के नोक पर हो सकती है। यहा केवल चतुयुग्म राशियों की विविधता का वर्णन है।
केन्द्र 1,4,7,10
पनफर 2,5,8,11
आपोक्लिम 3,6,9,12
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◾ चर रशिया केन्द्र मे हो, तो बाहरी दुनिया मे होने वाली घटनाऐ स्वयम से प्रेरित या आमंत्रित होते है।
◾स्थिर रशिया फणफर स्थान मे इच्छा और कार्रवाही की गति से सम्बंधित होती है।
◾द्विस्वभाव राशियो का आपोक्लिम मे कार्रवाही की अपेक्षा विचारो पर अधिक असर है।
◾जन्म के समय जो ग्रह और रशिया आपोक्लिम भाव मे होती है वे प्रारम्भिक जीवन मे कम या ज्यादा सुप्तावस्था मे रहती है और कुण्डली की दिशात्मक गति से केन्द्र / कोण की ओर प्रगति मे कार्रवाही मे परिवर्तित हो जाते है।
Wednesday, 7 September 2022
रुद्राभिषेक क्यों करें इससे क्या लाभ मिलेगा
रुद्राभिषेक क्यों करें
क्यों किया जाता है रुद्राभिषेक?
रुद्राभिषेक मुख्य रूप से मनुष्य अपने सभी दुखों से मुक्ति पाने के लिए करते हैं। रूद्र अवतार शिव का विधि पूर्वक अभिषेक करने से मनुष्यों को उसके सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्रों में लिखा है “रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:” यानि कि शिव सभी दुखों को हरकर उनका नाश कर देते हैं। ऐसी मान्यता है कि कुंडली में मौजूद महापातक या अशुभ दोष भी शिव जी का रुद्राभिषेक करने से दूर हो जाते हैं। रुद्राभिषेक कर शिव जी के द्वारा शुभ आशीर्वाद तथा मनवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है। इसके द्वारा व्यक्ति कम समय में ही अपने सभी मनोकामनाओं की पूर्ती कर सकता है।
“सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।
रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिर्जनार्दन:।
यो रुद्र: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स हुताशन:।
ब्रह्मविष्णुमयो रुद्र अग्नीषोमात्मकं जगत्।।”
इसका अर्थ है कि सभी देवताओं में रूद्र समाहित हैं और सभी देवता रूद्र का ही अवतार है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश सभी रूद्र के ही अंश हैं। इसलिए रुद्राभिषेक के द्वारा ऐसा भी माना जाता है की सभी देवताओं की पूजा अर्चना एक साथ हो जाती है। हिन्दू धार्मिक मान्यतों के अनुसार मात्र रूद्र अवतार शिव का अभिषेक करके व्यक्ति सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। केवल रुद्राभिषेक के द्वारा शिव जी के साथ-साथ अन्य देवगणों की पूजा भी सिद्ध हो जाती है। रुद्राभिषेक के दौरान मनुष्य अपनी विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए भिन्न प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करते हैं।
रुद्राभिषेक के लाभ
शिव जी का रुद्राभिषेक यदि जल से किया जाए तो इससे धन प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है।
घर या प्रॉपर्टी से जुड़े लाभ प्राप्त करने के लिए शिव जी का दही से रुद्राभिषेक करना फलदायी साबित हो सकता है।
आर्थिक लाभ प्राप्त करने या बैंक बैलेंस बढ़ाने के लिए शहद और घी से रुद्राभिषेक करना फलदायी साबित हो सकता है।
यदि व्यक्ति किसी तीर्थस्थल से प्राप्त पवित्र जल से शिव जी का रुद्राभिषेक करे तो इससे मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यदि आप किसी रोग से निजात पाना चाहते हैं तो इसके लिए शिव जी का कुशोदक से अभिषेक करना आपके लिए लाभकारी रहेगा।
गाय के दूध से शिव जी का अभिषेक कर पुत्र की प्राप्ति की जा सकती है।
अपने वंश का विस्तार करने के लिए घी से शिव जी का रुद्राभिषेक किया जाना बेहद लाभकारी साबित हो सकता है।
शिव जी का अभिषेक यदि सरसों के तेल से किया जाए तो इससे शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।
टाइफाइड या तपेदिक के रोग से पीड़ित होने पर शिव जी का शहद से अभिषेक करना आपके लिए फलदायी साबित हो सकता है।
छात्र यदि दूध में शक्कर मिलाकर शिव जी का अभिषेक करें तो इससे उनकी बुद्धि में वृद्धि होती है और परीक्षा में अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
धन प्राप्ति या कर्जे से मुक्ति पाने के लिए गन्ने के रस से शिवजी का अभिषेक करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
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रुद्राभिषेक से जुड़े नियम
रुद्राभिषेक के लिए सबसे उत्तम यही होता है कि आप किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करें।
शिव जी का वो मंदिर जो किसी नदी के तट पर स्थित हो या फिर किसी पर्वत के किनारे हो, वहां स्थित शिवलिंग का रुद्राभिषेक करना ख़ासा फलदायी साबित हो सकता है।
किसी मंदिर के गर्भघर में स्थित शिवलिंग का अभिषेक करना भी फलदायी साबित हो सकता है।
यदि आपके घर में ही शिवलिंग स्थापित है तो शिव जी का रुद्राभिषेक आप घर पर भी कर सकते हैं।
रुद्राभिषेक की सम्पूर्ण विधि
जब कोई व्यक्ति किसी विशेष परिस्थिति या समस्या से ग्रसित होता है तो ऐसी स्थिति में शिव जी का रुद्राभिषेक कर उन समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। हिन्दू धर्म में शिव की अाराधना की इस विधि को बेहद कारगर और फलदायी माना गया है। ऐसी मान्यता है की रुद्राभिषेक के द्वारा व्यक्ति अपने पिछले जन्म के पापों से भी मुक्ति पा सकता है। व्यक्ति जिस मनोकामना के लिए रुद्राभिषेक करते हैं उससे संबंधित द्रव्यों से ही शिव जी का अभिषेक किया जाना चाहिए।
रुद्राभिषेक की सही पूजा विधि
रुद्राभिषेक की विधि शुरू करने से पहले गणेश जी कि श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना की जानी चाहिए। इस दौरान रुद्राभिषेक करने की संकल्प ली जाती है और फिर आगे की विधि शुरू की जाती है। इसके साथ ही भगवान् शिव, पार्वती सहित सभी देवता और नौ ग्रहों का मनन कर रुद्राभिषेक का उद्देश्य बताया जाता है। ये पूजा विधि संपन्न होने के बाद ही रुद्राभिषेक की प्रक्रिया शुरू की जाती है। अब शिवलिंग को उत्तर दिशा में स्थापित किया जाता है, यदि शिवलिंग पहले ही उत्तर दिशा में स्थापित है तो अच्छी बात है। घर पर यदि इस क्रिया को संपन्न कर रहे हैं तो इसके लिए आप मिट्टी से शिवलिंग बनाकर उसका अभिषेक कर सकते हैं। रुद्राभिषेक करने के लिए स्वयं पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठे और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हुए इस विधि की शुरुआत करें। सबसे पहले शिवलिंग को गंगाजल से स्नान करवाने के बाद रुद्राभिषेक में इस्तेमाल की जाने वाली सभी चीजों को अर्पित करें। अंत में शिवजी को प्रसाद चढ़ाएं और उनकी आरती करें। इस क्रिया के दौरान अर्पित किया जाने वाला जल या अन्य द्रव्यों को इस क्रिया के दौरान उपस्थित सभी जनों पर छिड़के और उन्हें प्रसाद स्वरूप पीने दें। इस क्रिया के दौरान विशेष रूप से “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप जरूर करें। रुद्राभिषेक खासतौर से किसी विद्वान् पंडित से करवाना अत्यंत सिद्ध माना जाता है। हालाँकि यदि आप स्वयं भी रुद्राष्टाध्यायी का पाठ कर इस विधि को पूर्ण कर सकते हैं।
रुद्राभिषेक में प्रयोग की जाने वाली सामग्री
इस विधि को प्रारंभ करने से पहले उपयुक्त सभी सामग्रियों को एकत्रित कर लेनी चाहिए। इसके लिए मुख्य तौर पर दीया, घी, तेल, बाती, फूल, सिन्दूर, चंदन का लेप, धूप, कपूर, अगरबत्ती, सफ़ेद फूल, बेल पत्र, दूध, गंगा जल और जिस मनोकामना के लिए रुद्राभिषेक करने जा रहे हैं उससे संबंधित द्रव्य, गुलाब जल आदि एकत्रित कर लें।
इसके अलावा यदि शिवलिंग ना मिले तो आप अपने हाथ के अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका रुद्राभिषेक कर सकते हैं।
रुद्राभिषेक यदि जल से कर रहे हैं तो उसके लिए तांबे के बर्तन का ही प्रयोग करें।
रुद्राभिषेक के दौरान रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का जाप करना फलदायी साबित होता है।
रुद्राभिषेक के दौरान इस मंत्र करें जाप
शिव जी का रुद्राभिषेक करते समय मुख्य रूप से “रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:“ मंत्र का जाप करना विशेष फलदायी माना जाता है। इस मंत्र का अर्थ है कि रूद्र अवतार शिव हमारे दुखों को जल्द हर कर उसे समाप्त कर देते हैं। इस पवित्र क्रिया के दौरान निम्नलिखित श्लोकों का जाप करना उत्तम माना जाता है।
ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ॥
ईशानः सर्वविद्यानामीश्व रः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति ब्रह्मा शिवो
मे अस्तु सदाशिवोय् ॥
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः
॥
वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो
रुद्राय नमः कालाय नम: कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः
बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥
सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः ।
भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः ॥
नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा ।
भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: ॥
यस्य नि:श्र्वसितं वेदा यो वेदेभ्यो खिलं जगत् ।
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा
मृतात् ॥
सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥
विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय
नमो अस्तु ॥
इस प्रकार से आप भी भगवान् शिव का रुद्राभिषेक कर अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं। केवल आपको इस बात का ध्यान रखना है कि जिस मनोकामना के लिए आप रुद्राभिषेक करने जा रहे हैं उसी के अनुसार अभिषेक के लिए द्रव्य का चुनाव करें।
हम आशा करते हैं की रुद्राभिषेक पर आधारित हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं !
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