Tuesday, 31 August 2021

कैंसर रोग दूर होंगे इस मंत्र द्वारा

 कैंसर जैसे रोग दूर कर सकते हैं सरल मंत्र जप द्वारा।

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मंत्रों की शक्ति से रोग भागते हैं। मंत्रों में गजब की शक्ति होती है। इनका नियमित जप न केवल जातक को मानसिक शांति देता है, बल्कि उन्हें होने वाली गंभीर बीमारियों को भी दूर भगा सकता हैं। अब आप कितना करते है यह तो आप पर निर्भर करता हैं। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं यदि कुछ रोग जड़ से सामाप्त हो जाएं।

मस्तिष्क रोग

ॐ उमा देवीभ्यां नम:।

यह मंत्र मस्तिष्क संबंधी विभिन्न रोगों जैसे सिरदर्द, हिस्टीरिया, याददाश्त जाने आदि में लाभदायी माना जाता है।


आंखों के रोग


ॐ शंखिनीभ्यां नम:।

इस मंत्र से जातक को मोतियाबिंद सहित रतौंधी, नेत्र ज्योति कम होने आदि की परेशानी में लाभ मिलता है।


हृदय रोग

ॐ नम: शिवाय संभवे व्योमेशाय नम:।

हृदय संबंधी रोगों से अधिकांश लोग पीड़ित होते हैं। इसलिए अगर वे इस मंत्र का जप करें, तो उन्हें लाभ मिलता है।


स्नायु रोग

ॐ धं धर्नुधारिभ्यां नम:।


कान संबंधी रोग

ॐ व्हां द्वार वासिनीभ्यां नम:।

कर्ण विकारों को दूर करने में यह मंत्र आश्चर्यजनक भूमिका निभाता है।


कफ संबंधी रोग

ॐ पद्मावतीभ्यां नम:।


श्वांस रोग

ॐ नम: शिवाय संभवे श्वासेशाय नमो नम:।


पक्षाघात रोग

ॐ नम: शिवाय शंभवे खगेशाय नमो नम:।



कैंसर रोग


ॐ नम: शिवाय शंभवे कर्केशाय नमो नम:।


यह मंत्र किसी भी तरह के कैंसर रोग में लाभदायक होता है।

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Monday, 16 August 2021

विवाह रुकवाने के उपाय

 विवाह रुकवाने के सरल उपाय


शादी रुकवाने का मंत्रज्योतिष और वास्तु समाधान  🏠Vastu Guru_ Mk.✋

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शादी व्याह के मामलें में ये कहावत बहुत प्रचलित हैं कि “आटें में चुटकी बराबर नमक चलता हैं|” अर्थात शादी-व्याह कराने के लिए यदि थोड़े बहुत झूठ बोलना भी पड़े तो बोल देनी चाहिए,क्योकि किसी कि शादी करवाना एक पुण्य का काम माना जाता हैं| ऐसे में यदि हम किसी कि शादी को रुकवाना चाहते हैं,तो हम पाप के भागीदारी होंगे| परंतु कई बार परिस्थिति ऐसी बनती हैं कि हम चाहते हैं कि अमुक की शादी रुक जाए|


शादी रुकवाने का मंत्र

शादी रुकवाने का मंत्र

क्योकि जिससे हम प्रेम करते हैं,उसकी शादी अपने आँखों के सामने किसी और से होते हुए नहीं देख सकते हैं| परंतु कई बार हम जिससे प्रेम करते हैं,घर वाले उसकी शादी किसी और से तय कर देते हैं| ऐसे में हम ज्योतिषशास्त्र में वर्णित टोटकों/उपायों को आजमा कर अपने प्रेमी कि शादी रुकवा सकते हैं| आज हम इस लेख में लाल किताब में उल्लेखित शादी रुकवाने के उपायों के बारे में जानेंगे|


यदि लड़की की शादी उसके घर वाले उसकी मर्जी के खिलाफ तय कर रहे हों,तो ऐसी परिस्थिति में लड़कियों को गुरुवार के दिन सवा लीटर दूध व सवा लीटर चना दाल का दान करना चाहिए|

यह प्रत्येक गुरुवार को तब तक करनी चाहिए,जब तक उन्हे अपना मनवांछित फल न मिल जाए| इस टोटकें को आजमाने से लड़की की शादी उस लड़के सा ना हो कर वहा होती हैं,जिस लड़के को वो पसंद करती हैं|

यदि आप अपने प्रेमी कि शादी रुकवाना चाहते हैं,तो एक नींबू लेकर उसपर अपने प्रेमी का नाम और जन्म तारीख लिख दें| अब इस नींबू को किसी भी तरीके से अपने प्रेमी के सिरहाने में रख दें|

इस टोटकें के असर से आपके प्रेमी कि शादी में अडचने पैदा हो जाएँगी| यह सतप्रतिशत आजमाया हुआ टोटका हैं|

अपनी शादी रोकने का टोटका

अपनी शादी रोकने का टोटका, यदि आपकी शादी आपके मर्जी के खिलाफ घर वालों ने तय कर दी हों,तो आप अपनी शादी रुकवाने के लिए ज्योतिषशास्त्र में दिये हुए टोटकों को आजमा सकते हैं| अपनी शादी रुकवाने के लिए कुछ टोटकाओं के बारे में जानते हैं:-


मंगलवार अथवा शनिवार को पास के भैरव मंदिर में, आटे का एक चौमुख दीप बनाए और बतियोंको लाल कुमकुम से रंग लें| तत्पश्चात दीया को प्रतिमा के समक्ष जलाए|

अब जिस लड़का अथवा लड़की से आपकी शादी की बात चल रही हों,उसका नाम लेते हुए कुछ सरसों के दाने दीपक में डाल दें| इसके बाद नीम मंत्र का जाप करे:-

मंत्र:- ध्यायेन्नीलाद्रिकांतम शशिश्कलधरम, मुंडमालं महेशम| दिगवस्त्रम पिंगकेशंग डमरूमथ सृणिं खडगपाशाभयानि||नागं घण्टाकपालं करसरसिरुहै र्बिभ्रतं भीमद्रष्टम।दिव्यकल्पम त्रिनेत्रं मणिमयविलसद किकिणी नुपुराढ्यम।।


२१ बार उपयुक्त मंत्र का जाप करने के उपरांत अब उस लड़का अथवा लड़की का नाम लेते हुए काले उरद के दानों को दीया में डाल दें| इस अनुष्ठान के पूर्ण होने के २४ घंटो के अंतराल में आपको आपकी शादी टूटने की खबर मिल जाएगी|

लौंग की सहायता से टोटका करने पर भी कोई अपनी शादी रुकवा सकता हैं| इसके लिए पाँच लौंग की आवश्यक्ता होती हैं| इन पाँच लौंगों को लेकर नीचे दिये हुए मंत्र के जाप से अभिमंत्रित कर ले|

मंत्र:- ॐ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नम:


अब इस अभिमंत्रित लौंग को जमीन में अपनी शादी तुड़वाने के संकल्प के साथ आधा गाड़ दें| ध्यान रहे की फूल वाला हिस्सा ऊपर रहे| यह प्रक्रिया कम से काम पाँच दिन करे| आपको अवश्य ही अपना मनवांछित फल की प्राप्ति होगी|


प्रेमी की शादी रोकने का उपाय

हमारे भारतीय समाज में शादी-व्याह तय करने में हमारे माता-पिता अहम भूमिका निभाते हैं| ऐसे में कई बार ऐसा होता हैं कि जिससे हम प्यार करते उसकी शादी उसके माता-पिता कही और तय कर देते हैं| यदि हम अपने प्रेमी कि शादी को रुकवाना चाहते हैं,तो हमें ज्योतिषशास्त्र में बताये हुए निम्न उपायों को आजमाना चाहिए:-


प्रेमी की शादी तोड़ने के लिए कन्या मासिक धर्म के समय होने वाले रक्तस्त्राव और अपने प्रेमी की तस्वीर दोनों को साथ में लेकर उन्हे जला कर एक भस्म तैयार कर लें| अब इस भस्म से किसी भी तरह से अपने प्रेमी को तिलक लगा दें| तत्पश्चात निम्न मंत्र का २१ बार तीन माला जाप करें-

मंत्र- अरहंताणं यीङ्ग हीङ्ग ब्रूम ब्रूम फट स्व:_


इस मंत्र के प्रभाव से आपके प्रेमी की शादी अथवा सगाई रुक जाएगी|

अपने प्रेमी की शादी अथवा सगाई रुकवाने के लिए ज्योतिषशास्त्र में एक सिद्ध मंत्र का उल्लेख मिलता हैं,जिसके प्रतिदिन १०८ माला जाप से आपके प्रेमी की शादी/सगाई किसी न किसी कारण से रुक जाएगी|

मंत्र- ए सः वल्लरी क्ली कर क्ली कामपिशाचप, अमुकी काम ग्राह स्वपने मम रुपे निखे विदास्य: ||


उपयुक्त मंत्र का उपयोग यदि सही ढंग से किया जाए तो,यह मंत्र बहुत ही प्रभावकारी सिद्ध होगा|

एक कच्चे मिट्टी के बर्तन में १०० किलोग्राम चावल, १०० किलोग्राम काले तिल भर लें| अब एक सफ़ेद कपड़ा पर अपने प्रेमी का नाम व जन्म तिथि लाल सिंदूर से लिख दें| अब इस बर्तन को उसी सफ़ेद कपड़े से बांध दें| इसके बाद इस बर्तन को किसी सुनसान चौराहे पर रात्री के १२ बजे रख दें| इस बर्तन के सामने एक दीपक जला कर सात बार अपने प्रेमी का नाम पुकारे| ध्यान रहे कि वापस आते हुए पीछे मुड़ कर ना देखे| प्रेमी कि शादी तुड़वाने का यह रामबाण टोटका हैं|

प्रेमी की सगाई तोड़ने के उपाय

प्रेमी की सगाई तोड़ने के उपाय, यदि आप जिससे प्रेम करते हैं,उसकी सगाई किसी और से तय हो गयी हों,तो यह सगाई तुड़वाने के लिए जातक निम्नलिखित ज्योतिष उपायों को आजमा सकता हैं:-


पुष्य नक्षत्र काल में जातक एक उंगली की मानव हड्डी को लेकर इसे कील का रूप दे दे|

अब इस कील रूपी हड्डी को नीचे दिये हुए मंत्र के १००८ माला जाप के साथ सिद्ध करलें|

“मंत्र- ॐ ह्रीं (अमुक) फट स्व:”


मंत्र जाप के समय अमुक की जगह प्रेमी कि जिससे सगाई हुई हैं,उसका नाम ले|

अब इस सिद्ध किए हुए हड्डी को जिन दों व्यक्ति कि सगाई हुई हैं,उनमे से एक के घर या तो फेक दे या मिट्टी में दबा दें|

इस टोटके के प्रभाव के चलते केवल ११ दिनों में आपकी मनोकामना पूर्ण हों जाएगी और आपके प्रेमी कि सगाई टूट जाएगी|

प्रेमी कि सगाई तोड़ने के मंत्र में निम्न मंत्र भी काफी कारगर सिद्ध हुई हैं:-

मंत्र –” ॐश्री हिं चूँडामनियाये स: रिद्धि-सिद्धि पिशाचिनी रूपाये स्व:”


सबसे पहले उपयुक्त मंत्र का १०८ बार जाप करे| तत्पश्चात कपड़े की एक पुतली बनाकर इस मंत्र से इस पुतली को अभिमंत्रित करते हुए प्रेमी के नाम की फूँक मारे|

अब इस पुतली को प्रेमी के घर के पास जमीन में गाड़ दें|

इस टोटकें का असर से आपके प्रेमी की सगाई किसी ना किसी वजह से टूट जाएगी|

जैसे कि लेख के शुरुआत में हमने इस विषय पर चर्चा कि की किसी की शादी अथवा सगाई तुड़वाना गलत कार्य हैं,परंतु यदि हमारा उद्देश सही हो,और हम निस्वार्थ भाव से किसी की शादी रुकवाना चाहते हैं,तो हम उपयुक्त वर्णित सभी उपायों व टोटकों में से किसी को भी आजमा सकते हैं|

Note- कोई भी उपाय करने से पहले किसी अच्छे ज्योतिष से परामर्श लें। हानि भी हो सकती है। इसके जिम्मेदार आप खुद होंगे। 

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Sunday, 15 August 2021

कैंसर रोग और कारक ग्रह

 किस ग्रह के कारण कैंसर रोग होते हैं

ग्रह और कैंसर रोग  
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निरोगी शरीर का अर्थ है शरीर का रोग से रहित होना ।रोग दो प्रकार के होते है एक- साध्य रोग जो कि उचित उपचार, आहार,व्यबहार ठीक हो जाते हैं दूसरे – असाध्य रोग जो कि उपचार के बाद भी व्यक्तिओं का पीछा नही छोडते है. इन्ही असाध्य रोगों मे अधिकाश रोग जिन्दगी भर साथ रहते है तथा उचित उपचार के साथ जिन्दगी के लिये घातक नही होते हैं परन्तु दो असाध्य रोग ऐसे है जिनका कोई उपचार नही है तथा वे दोनो रोगी की जान लेकर ही रहते हैं वे दो रोग हैं 01.–कैंसर02.–एड्स.
इस आलेख मे हम कैंसर रोग के ज्योतिषीय पहलू का विवेचन करने का प्रयास करते है।
 आइये पहले यह जाने कि कैंसर रोग क्या है ??
आयुर्वेद के अनुसार त्वचा की छठी परत जिसे आयुर्वेद मे रोहिणी कहते है जिसका संस्कृत मे अर्थ है कोशिकाओं की रचना. जब ये कोशिकाये क्षतिग्रस्त होती हैं तो शरीर के उस हिस्से मे एक ग्रन्थि बन जाती है इस ग्रन्थि को असमान्य शोथ भी कहती है.जिसे आयुर्वेद मे बिभिन्न स्थान और प्रकार के नामों से जाना जा ता है जैसे: अर्बुद, गुल्म, शालुका आदि. जब ये शोथ त्रिदोषों (वात,पित्त,कफ) के नियंत्रण से परे हो जाते हैं . तब यह ग्रन्थि कैंसर क रूप ले लेती हैं
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार ज्योतिष पूर्वजन्म के किये हुए कर्मो का आधार है अर्थात हम ज्योतिष द्वारा ज्ञात कर सकते हैं कि हमारे पूर्वजन्म के किये हुए कर्मो का परिणाम हमे इस जन्म मे किस प्रकार प्राप्त होगा ज्योतिर्विग्यान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है. ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विग्यान कैंसर सहित सभी रोगों की पहचान मे बहुत ही सहायक होता है. पहचान के साथ –साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था मे होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नही, यह सभी ज्योतिष द्वारा सटीक जाना जा सकता है
वर्तमान समय में कैंसर सर्वाधिक भयप्रद बीमारी के रुप में चर्चित है । वैज्ञानिकों की लाख चेष्टा के बावजूद अभी तक इसका समुचित उपचार ढूढ़ा नहीं जा सका है । थोड़े-बहुत जो भी उपचार हैं, वो बहुत ही अर्थ साध्य हैं और पूरे तौर पर सुनिश्चित भी नहीं हैं । समुचित उपचार का अभाव ही रोग को अधिक भयावह बना दिया है । रोग का निश्चय हो जाना, मृत्यु घोषित हो जाने जैसा है । सबसे बड़ी बात ये होती है कि प्रायः घोषणा ही तब होती है जब रोग चौथे स्तर में पहुँच चुका होता है । फलतः उपचार के लिए समुचित समय भी नहीं मिल पाता ।
मानव शरीर में कैंसर की उत्पत्ति में कोशिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। कोशिकाओं में श्वेत एवं लाल रक्त कण होते हैं। ज्योतिष में श्वेत रक्त कण का सूचक कर्क राशि का स्वामी चंद्र तथा लाल रक्त कण का सूचक मंगल है। कर्क राशि का अंग्रेजी नाम कैंसर है तथा इसका चिह्न केकड़ा है। केकड़े की प्रकृति होती है कि वह जिस स्थान को अपने पंजों से जकड़ लेता है, उसे अपने साथ लेकर ही छोड़ता है। इसी प्रकार कोशिकाएं मानव शरीर के जिस अंग को अपना स्थान बना लेती है उसे शरीर से अलग करके ही कोशिकाओं को हटाया जाता है। इसलिए ज्योतिष में कैंसर जैसे भयानक रोग के लिए कर्क राशि के स्वामी चंद्र का विशेष महत्व है। इसी प्रकार रक्त में लाल कण की कमी होने पर प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है। 
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि वैदिक ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है। ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान कैंसर सहित सभी रोगों की पहचान में सहायक होता है। पहचान के साथ-साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था में होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नहीं, यह सभी ज्योतिष विधि द्वारा जाना जा सकता है |
इस रोग के होने में ग्रहों के साथ भाव भी पीड़ित होना चाहिए। फिर दशा/अन्तर्दशा का आंकलन किया जाना चाहिए, उसके बाद अंत में गोचर देखा जाना चाहिए |कैंसर एक लम्बी अवधि तक होने वाला रोग हैं. इसलिए छ्ठे भाव व अष्टम भाव का संबंध बनना आवश्यक है क्योकि छठा भाव रोग और आठवाँ भाव लम्बी अवधि तक होने वाले रोग हैं. शनि और राहु लम्बे समय तक चलने वाले रोगो की सूचना देते हैं. इसलिए इन दोनो ग्रहों की भूमिका भी कैंसर रोग के होने में मुख्य होती है।
कैंसर रोग का संबंध राहु, पीड़ित चंद्रमा, पीड़ित बृहस्पति या शनि से होता है और यह मेष, वृष, कर्क, तुला और, मकर राशियों से संबंधित होता है. किसी व्यक्ति की कुण्डली में चंद्रमा जब षष्ठेश या अष्टमेश होकर पीड़ित होता है और साथ ही दशा भी प्रतिकूल चल रही हो तब व्यक्ति को कैंसर रोग होने की संभावना बनती है.|शनि असाध्य एवं भयानक लंबे समय तक चलने वाले रोगों का परिचालक है। इसके संयोग से अधिक इसकी दृष्टि पीड़ादायक है।शरीर में किसी भी प्रकार की रसौली जल से होता है। अत: जल राशियों कर्क, वृश्चिक और मीन। ये जल राशियां हैं। इनके पाप ग्रस्त होने पर कैंसर की संभावना प्रबल होती है |
जन्म कुंडली में जब एक भाव पर ही अधिकतर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, विशेषकर शनि, राहु व मंगल से तब उस संबंधित भाव वाले अंग में कैंसर होने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली में यदि नेप्च्यून व यूरेनस आमने-सामने हो तब इसे अत्यधिक अशुभ माना जाता है और यह बहुत ही घातक परिणाम देने वाले सिद्ध हो सकते हैं। 
यदि जन्म कुंडली में दशानाथ पीड़ित होता है तब इस रोग के होने की संभावना अधिक होती है। कैंसर रोग जिस दशा में होता है, उसके बाद आने वाली दशाओं का आंकलन किया जाना चाहिए. यदि यह दशाएँ शुभ ग्रहों की है या अनुकूल ग्रह की है या योगकारक ग्रह की दशा आती है तब रोग का पता आरंभ में ही चल जाता है और उपचार भी हो जाता है.
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए भले ही कैंसर एक नयी बीमारी हो, किन्तु भारतीय विज्ञान- आयुर्वेद और ज्योतिषशास्त्र के लिए बिलकुल नया नहीं है । आयुर्वेद में कर्कटार्बुद नाम से विशद वर्णन है इस व्याधि का और समुचित चिकित्सा भी सुझायी गयी है । इसी भांति ज्योतिष में भी इसकी पर्याप्त चर्चा है । किन्तु हमारा दुर्भाग्य है कि हमें अपने शास्त्रों पर भरोसा नहीं है । इसे पढ़ने, जानने, अनुसंधान करने में उतनी अभिरुचि नहीं है, जितनी पाश्चात्य पद्धतियों में । ये भी सोलह आने सच है कि हमारे शास्त्रीय विज्ञान को वर्बरता पूर्वक विदेशियों द्वारा नष्ट-भ्रष्ट किया गया है । खेद है कि आज भी वही काम , पहले से भी कहीं बढ़-चढ़कर स्वदेशियों द्वारा जारी है ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राहु-केतु जिन भावों में होते हैं, उनसे संबंधित अंगों में कैंसर की आशंका होती है। इसके अतिरिक्त इनकी जिन ग्रहों से युति हो उनसे संबंधित अंगों में भी कैंसर होने की संभावना अधिक होती है। इनके अलावा भी जन्म कुंडली में कुछ दोष होने पर कैंसर हो सकता है। ये उपाय करें ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में स्थित जिन ग्रहों के कारण कैंसर होने की संभावना बन रही है, उन ग्रहों से संबंधित ज्योतिषिय उपाय करें व उन ग्रहों के जप पूर्ण विधि-विधान से करें। उपरोक्त उपाय करने से कैंसर होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं अथवा कैंसर होने पर भी इसका समुचित उपचार हो जाता है।

कैंसर के मुख्य कारक ग्रह मंगल, शनि, राहु, केतु एवं यूरेनस हैं। खासकर केतु एवं यूरेनस जब शनि, मंगल एवं राहु को अशुभ रूप से प्रभावित करते हैं तो कैंसर रोग होता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि राहु ग्रह का कुंडली के छठे भाव पर बुरे प्रभाव से रोग उत्पन्न होते हैं।


 
सर्वविदित है कि ज्योतिषशास्त्र पूर्वानुमान और सुनिश्चय का शास्त्र है । इसका सहारा लेकर यदि विचार करें तो समय से बहुत पहले ही स्थिति ज्ञात हो जा सकती है और तदनुरुप समुचित उपचार भी कर सकते हैं । आज इसी आलोक में अर्बुदकर्कट / कर्कटार्बुद पर विचार करते हैं ।
ज्योतिर्विग्यान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है. ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान, सहित सभी रोगों की पहचान मे बहुत ही सहायक होता है. पहचान के साथ –साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था मे होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नही, यह सभी ज्योतिष द्वारा सटीक जाना जा सकता है केंसर या कर्क रोग की पहचान निम्न ज्योतिषीय योग होने पर बडी आसानी से की जा सकती है—
रोग होने की स्थिति में जन्म कुंडली के साथ नवांश कुंडली, षष्टियाँश कुंडली और अष्टमांश कुंडली का भी भली-भाँति विश्लेषण करना चाहिए उसके बाद किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए। राहु को कैंसर का कारक माना गया है लेकिन शनि व मंगल भी यह रोग देते हैं. गुरु को वृद्धि का कारक ग्रह माना जाता है और कैंसर शरीर के किसी अंग में अवांछित वृद्धि से ही होता है और साथ ही यदि यह षष्ठेश या अष्टमेश होकर पीड़ित है तब कैंसर की संभावना बनती है। योगानुसार निम्न योग कैंसर कारक हो सकते हैं…
1. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है।
2. षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव मे स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
3. बारहवें भाव में शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है।
4. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है।
5. षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडि़त या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो।
6. बुध ग्रह त्वचा का कारक है अत: बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है।
7. बुध ग्रह की पीडि़त या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है।
बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ”रोग स्थाने गते पापे , तदीशी पाप….. अत: जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडि़त हो सकता है।
8.सभी लग्नो में कर्क लग्न के जातकों को सबसे ज्यादा खतरा इस रोग का होता है|
9.कर्क लग्न में बृहस्पति कैसर का मुख्य कारक है, यदि बृहस्पति की युति मंगल और शनि के साथ छठे, आठवे, बारहवें या दूसरे भाव के स्वामियों के साथ हो जाये व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होना लगभग तय है|
10.शनि या मंगल किसी भी कुंडली में यदि छठे या आठवे स्थान में राहू या केतु के साथ हों तो कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है|
11.छठे भाव का स्वामी लग्न, आठवे या दसवे में भाव में बैठा हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना होती है|
12.किसी जातक की कुंडली में सूर्य यदि छठे, आठवे या बढ़ावे भाव में पाप ग्रहों के साथ हो तो जातक को पेट या आंतों में अल्सर और कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है|
13.किसी जातक की कुंडली में यदि सूर्य कही भी पाप ग्रहों के साथ हो और लग्नेश या लग्न भी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना रहती है|
14.कमज़ोर चंद्रमा पापग्रहों की राशी में छठे, आठवे या बारहवे हो और लग्न अथवा चंद्रमा, शनि और मंगल से दृष्ट हो तो अवश्य ही कैंसर होता है|
15. चंद्रमा व शनि छठे भाव में स्थिति है तब व्यक्ति को पचपन वर्ष की उम्र पार करने के बाद रक्त कैंसर हो सकता है.
16. आश्लेषा नक्षत्र, लग्न या छठे भाव से संबंधित होने पर और मंगल से पीड़ित होने पर कैंसर होने की संभावना बनती है.
17. शनि छठे भाव में राहु के नक्षत्र में स्थित हो और पीड़ित हो तब कैंसर रोग की संभावना बनती है.
18. शनि और मंगल की युति छठे भाव में आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र में हो रही हो.तो कैंसर की संभावना बनती है |
19. मंगल और राहु छठे या आठवें भाव को पीड़ित कर रहे हों तब त्वचा का कैंसर हो सकता है.
20. छ्ठे भाव में मेष राशि हो या स्वाति या शतभिषा नक्षत्र पड़ रहा हो और शनि छठे भाव को पीड़ित कर रहा हो तब त्वचा कैंसर का रोग हो सकता है.
21. जन्म कुंडली में राहु या केतु लग्न में षष्ठेश के साथ हो तो पेट का कैंसर हो सकता है |
22. छठा भाव पीड़ित हो और राहु या केतु, आठवें या दसवें भाव में स्थित हो तो पेट का कैंसर हो सकता है |
23. यदि किसी जातिका की कुण्डली में लग्नेश अष्टम, षष्टम अथवा द्वाद्श में चला गया हो, लग्न स्थान पर क्रूर व पापी ग्रहों की स्थिति हो, चतुर्थ स्थान का अधिपति शत्रुगृही होकर पीड़ित हो, छठे भाव का अधिपति चतुर्थेश से संबंध बना रहा हो तो ऐसी स्थिति में जातिका को ब्रेस्ट कैंसर या स्तनों में बड़े विकार की संभावना प्रबल रूप से मौज़ूद होती है।
24. छठे भाव में कर्क अथवा मकर राशि का शनि स्तन कैंसर का संकेत देता है।
25. छठे भाव में कर्क या मकर का मंगल स्तन कैंसर का द्योतक है।
26. यदि छठे भाव का स्वामी पाप ग्रह हो और लग्नेश आठवें या दसवें घर में बैठा हो तो कैंसर रोग की आशंका रहती है।
27. छठे भाव में कर्क राशि में चंद्रमा हो, तब भी कैंसर का द्योतक है।
28. चंद्रमा से शनि का सप्तम होना कैंसर की संभावना को प्रबल बनाता है।
इनके अतिरिक्त ज्योतिष रत्न के पाठ 24 के अनुसार—
१. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबन्ध हो एवम इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर मे विष की मात्रा बढ जाती है
२. षष्टेश लग्न ,अष्टम या दशम भाव में स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ जाती है
३. बारहवे भाव मे शनि-मंगल या शनि –राहु,शनि-केतु की युतिहो तो जातक को कैंसर रोग देती है.
४. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढाती है.
इनके अलावा निम्न बिन्दु भी कैसर रोग की पह्चान के लिये मेरे अनुभव सिद्ध है
१ षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडित या क्रूर ग्रह के नक्षत्र मे स्थित हो
२ बुध ग्रह त्वचा का कारक है अतः बुध अगर क्रूर ग्रहो से पीडित हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैसर रोग होता है
३ बुध ग्रह की पीडित या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र मे स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है
बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ” रोग स्थाने गते पापे , तदीशी पाप..
अतः जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडित हो सकता है
कैंसर नाम की एक राशि होती है, जिसे भारतीय ज्योतिष में कर्कराशि कहते हैं । मेषादि राशिक्रम में इसका स्थान चौथा है । इसके स्वामी चन्द्रमा हैं । स्वभाव से यह चर राशि है । कालपुरुष के हृदय का प्रतिनिधित्व करती है ये राशि, फलतः जातक के हृदय से इसका विशेष सम्बन्ध माना जाता है । लग्नादि क्रम से चतुर्थ भाव को कर्क का प्रतिनिधित्व मिला है । अतः भले ही किसी जातक का जन्मलग्न कोई भी हो, उसके चतुर्थ भाव का विचार कर्करोग (कैंसर) विचार के सम्बन्ध में अवश्य करना चाहिए । साथ ही ये भी देखना चाहिए कि कर्कराशि जातक की कुण्डली में किस भाव में पड़ी हुयी, यानी कि जातक का जन्मलग्न क्या है ।  
जन्मांकचक्र के चतुर्थ भाव में राहु की अवस्थिति हो, अथवा कर्कराशि पर आरुढ़ होकर राहु किसी भी भाव में विराज रहा हो तो कर्करोग होने की सर्वाधिक आशंका जतायी जा सकती है । साथ ही ये भी देखना चाहिए कि चतुर्थ भाव और इसका भावेश किसी न किसी तरह यदि राहु से प्रभावित – दृष्ट, पीड़ित हो तो कर्करोग की आशंका जतायी जा सकती है । राहु की पूर्ण दृष्टिभोग के सम्बन्ध में अन्यान्य ग्रहों से किंचित भिन्न मत पर ध्यान देना चाहिए ।
यथा—सुत मदन नवान्ते पूर्ण दृष्टिं तमस्य , युगल दशम गेहे चार्द्ध दृष्टिं वदन्ति । सहज रिपु पश्यन् पाददृष्टिं मुनीन्द्राः , निज भुवन मुपेतो लोचनांधः प्रदिष्टः ।।  
(पंचम,सप्तम,नवम- पूर्ण दृष्टि, द्वितीय और दशम- अर्द्ध दृष्टि, तृतीय और षष्ठम पाद दृष्टि तथा स्वगृह(कन्या राशि पर)राहु लोचनांध होते हैं । )
 चतुर्थ भावपति का नीचस्थ वा शत्रुक्षेत्रस्थ होने पर भी कर्करोग की स्थिति हो सकती है । इन स्थितियों के अतिरिक्त चन्द्रमा, शनि, मंगल, सूर्य आदि का भी गम्भीरता से विचार अवश्य कर लेना चाहिए । क्यों कि उक्त ग्रहों की स्थिति, युति, दृष्टि आदि का सीधा प्रभाव पड़ता है रोग की स्थिति, मात्रा और अंग वा प्रकार पर । जैसे मंगल की विकृति से ब्लडकैंसर का खतरा हो सकता है । बुध की विकृति से ग्रन्थियों का बाहुल्य रहेगा इत्यादि 
मुख्यतः लोग षष्ठम भाव से रोग का विचार करते हैं, किन्तु इसके अतिरिक्त प्रथम, अष्टम व द्वादश भाव का भी गहन विचार करना चाहिए । साथ ही द्वितीय एवं सप्तम भाव को मारकेशत्व प्रधान होने के कारण इनपर भी विचार अवश्य करना चाहिए । रोग की साध्यासाध्यता की जानकारी हेतु सूर्य के बलाबल का ध्यान देना आवश्यक है । प्रभावी (जिम्मेवार) ग्रह (रोगकारक) की महादशा, अन्तर्दशादि के समय रोग की उग्रता समझनी चाहिए । मारकेशत्वों के बलाबल से साध्यासाध्यता की पहचान की जा सकती है ।
समझें केंसर के उपचार और उपाय को–
जन्म कुंडली में भावों के अनुसार शरीर से संबंधित ग्रहों के रत्नों का धारण करने से रोग-मुक्ति संभव होती है। लेकिन कभी-कभी जिसके द्वारा रोग उत्पन्न हुआ है, उसके शत्रु ग्र्रह का रत्न धारण करना भी लाभप्रद होता है। इसका आकलन किसी नीम हकीम ज्योतिषी से करवाना घातक हो सकता है |जिसे बहुत गंभीर समझ हो उसकी ही सलाह इस रोग में लेनी चाहिए और ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए।
एक बात बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि मात्र ज्योतिषीय मंत्र-तंत्र-यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है।क्योकि ग्रह स्थितियों को सुधारकर भी आप शरीर में आये भौतिक परिवर्तन को नहीं बदल सकते |दूध जब तक दूध है तभी तक उसे बचा सकते हैं ,दही बनने पर वह दूध नहीं हो सकता वापस |इसलिए मात्र ज्योतिषीय उपायों के बल पर बैठना घातक होगा |
तंत्र मंत्र की सीमा वहां तक है की रोगी में सकारात्मक ऊर्जा ,धनात्मक ऊर्जा बढ़ा देंगे जिससे लड़ने की क्षमता बढ़ जाए |भाग्य अगर किन्ही नकारात्मक ऊर्जा के कारण बाधित है अथवा नकारात्मक ऊर्जा रोग बढ़ा रही है तो उसे तंत्र मंत्र हटा देंगे |जीवनी शक्ति बढ़ा देंगे ,पर रोग हो गया तो उसे केवल इनसे ख़त्म करना मुश्किल है। 
ज्योतिषीय उपाय ,तंत्र मंत्र के साथ अवचेतन को बल देना बेहतर होता है क्योकि अंततः सारा खेल अवचेतन को ही करना होता है अगर यह निराश हताश हुआ तो फिर न दवा काम करेगी न कोई उपाय | इन सभी के साथ-साथ औषधि सेवन, चिकित्सकों के द्वारा दी गई सलाह आदि का पालन किया जाना उतना ही आवश्यक है। तभी इसका पूर्ण लाभ उठाया जा सकता हैै। अगर समय से पूर्व किसी भी घटना या दुर्घटना के बारे में जानकारी हो जाये तो उससे बचने का हर संभव प्रयास किया जा सकता है पर दुर्घटना होने के बाद मुश्किल हो जाती है।
स्तन कैंसर के ज्योतिषीय कारण –आखिर ब्रेस्ट कैंसर होता क्यों है ??
इसका जवाब जब आप ज्योतिष से जानने की कोशिश करेंगे तो आपको आसानी होगी।
क्या स्तन कैंसर का कोई ज्योतिषीय कारण भी हो सकता है? विज्ञान इसे खारिज कर सकता है परंतु सदियों पुराने ज्योतिष शास्त्र में इस व्याधि की ओर भी संकेत किया गया है।
जातक की कुंडली के कई योग बताते हैं कि अगर वे प्रभावशाली हो जाएं तो स्तन कैंसर जैसा रोग उत्पन्न हो सकता है। जानिए कारण और निवारण के बारे में।
यदि लग्नेश स्वस्थान से आठवें, छठे या बारहवें भाव में चला गया हो एवं लग्न के स्थान पर क्रूर ग्रह बैठे हों तो, चौथे स्थान का स्वामी शत्रु के घर में विराजमान हो और छठे का मालिक चौथे से संबंध बनाए तो संभव है कि उस महिला को स्तन संबंधी कोई बड़ा रोग हो जाए। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि यदि किसी महिला की कुंडली का लग्न कमजोर हो, उस पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो अथवा वहां ऐसे ग्रह विराजमान हों जो शुभ फल देने में सक्षम न हों तो रोगी होने की आशंका प्रबल होती है। 
अगर उसके साथ ही छठा भाव भी श्रेष्ठ परिणाम न देने वाला हो, चंद्र की स्थिति प्रभावी न हो तो महिला को स्तन कैंसर हो सकता है।
अगर महिला की कुंडली में छठे या आठवें भाव में कोई क्रूर ग्रह स्थित हो तो उसे असाध्य रोग होने की आशंका होती है। 
वहीं चतुर्थ भाव में क्रर ग्रहों का योग सीने में दर्द एवं बड़े रोगों की ओर इशारा करता है। अगर समय रहते उनका इलाज नहीं कराया तो स्थिति बेकाबू हो सकती है।
ऐसे में रोगी महिला को अपने खानपान पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। स्वस्थ जीवनशैली की आदत डालते हुए योग, ध्यान, प्राणायाम आदि करने चाहिए। इससे वह इस स्तन कैंसर के संकट को टाल सकती है।
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Saturday, 7 August 2021

हर मुसीबत से छुटकारा दिलाने के टोटके

 हर मुसीबत से छुटकारा दिलाने वाले टोटके


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति की रक्षा के लिए अनंत काल से रक्षा सूत्र, रक्षा कवच, रक्षा रेखा, रक्षा यंत्र आदि का उपयोग होता आया है। यह सदैव दुर्भिक्षों, अनहोनी घटनाओं, कुदृष्टि, मारण, उच्चाटन, विद्वेषण आदि तांत्रिक प्रयोगों से गुप्त रूप से सुरक्षा का काम करते रहे हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस रक्षा-सुरक्षा क्रम-उपक्रम में ही कीलन का उपयोग देखने को मिलता है।


तांत्रिक विद्या के अनुसार भांति-भांति की कीलों से तंत्र क्रियाओं द्वारा किसी स्थान को कीलने से अर्थात है वहां पर सुरक्षा कवच को स्थापित करना। बताया जाता है कीलन सुरक्षा की दृष्टि से तो किया ही जाता है परंतु इसके विपरीत ईर्ष्या-द्वेष, अनहित की भावना, शत्रुवत व्यवहार आदि के चलते भी स्थान का कीलन कर दिया जाता है।


कहने का मतलब है कि कीलन से अर्थ है सुरक्षा कवच। बांधने की क्रिया अर्थात किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान को सुरक्षा कवच में बाधने को कीलन या स्तम्भन कहते हैं। तो वहीं बंधे हुए को मुक्त करवाने की क्रिया को उत्कीलन कहा जाता है।


तंत्र विद्या की मानें तो कीलन सकारात्मक और नकारात्मक दो प्रकार से प्रयोग में लिए जाते हैं, उदाहरण:- किसी के काम से अन्य लोगों को हानि हो रही हो तो कीलन की विशेष प्रक्रिया द्वारा उसके काम को रोक दिया जाता है या दूसरे शब्दों में कहे तो कील दिया जाता है या स्तम्भित कर दिया जाता है।


साधना विधि-

इस मंत्र की साधना आप कभी भी शुरू कर सकते है। कीलन मंत्र साधना के लिए मंगलवार या शनिवार अच्छा रहता है। इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करने से इसका प्रभाव ओर बढ़ जाट है। आपको रोजाना दिन में एक बार इसका जाप करना होता है। पूर्व की तरफ मुख करके रुद्राक्ष की माला से किसी भी आसन का उपयोग कर इसका जप करें। कीलन मंत्र जपने के वक्त दो अगरबत्ती,कुछ पुष्प और कोई सी भी मिठाई पास रखनी चाहिए। इस तरह करने से कीलन मंत्र सिद्ध हो जाता है। ध्यान रहे जब भी किसी साधना को शुरू करना हो तो कीलन मंत्र का केवल 11 बार मंत्र जप करें। ऐसा करने से आपके सभी विघ्न, बाधाओं से रक्षा मिलेगी।


कीलन मंत्र-👉👉👉

*सिल्ली सिद्धिर वजुर के ताला, सात सौ देवी लूरे अकेला, धर दे वीर,पटक दे वीर,पछाड़ दे वीर, अरे-अरे विभीषण बल देखो तेरा, शरीर बाँध दे मेरा, मेरी भक्ति,गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र ,इश्वरो वाचा!


*आस कीलूं पास कीलूं, कीलूं अपनी काया जागदा मसान कीलूं बैठी कीलूं छाया इसर का कोट बर्मा की थाली मेरे घाट पिंड का हनुमान वीर रखवाला!


*हनुमन् सर्वधर्मज्ञ, सर्वकार्य विधायक। अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तुते।।🕉️


कहा जाता है जो व्यक्ति पर भूत-प्रेत या जादू टोने या अभिचार कर्म से ग्रसित हो उसक हित के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है। इसके अलावा इस मंत्र का प्रयोग किसी मकान अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान पर जिसको किसी शत्रु ने बांध दिया हो, उसके बंधन को तोड़ने के लिए इस मंत्र अति प्रभावशाली सिद्ध होता है। ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए लगातार 11 दिन तक प्रतिदिन इस मंत्र का 3000 बार जप करें।

👉👉👉

*सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याऽखिलेश्वरी। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ।।🕉️

 श्री दुर्गा सप्तशती का यह मंत्र अत्यन्त प्रभावशाली है।

ट्रांसफर करने/रुकबाने के उपाय

 ट्रांसफर करवाने रुकवाने के टोटके

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संसार में लगभग सभी एक अच्छी नौकरी की चाह रखते हैं, और साथ ही यह भी चाहते हैं कि नौकरी में स्थायित्व हो। बार – बार तबादले तथा असुविधाजनक यात्राओं का झंझट ना रहे। हर कोई चाहता है कि वह एक ऐसी जगह अपना रोजगार पाए, जो उसके अनुकूल हो। मगर अधिकतर यह संभव नहीं हो पाता। सरकार की कार्यशैली, बड़े अधिकारियों की मनमर्जी या अन्य कारणों से तबादलों की प्रक्रिया सभी को झेलनी पड़ती है। कभी – कभी तो अधिकारी व्यक्तिगत चिढ़ के कारण अपने अधीनस्थ को ऐसी जगह ट्रांसफर करा देते हैं जहां जीवन बहुत मुश्किल हो। इस कारण व्यक्ति की जीवन शैली में काफी व्यवधान पड़ता है, ना ही दिनचर्या संतुलित रह पाती है और ना ही परिवार ठीक से चल पाता है। सबसे ज्यादा दिक्कत तो बच्चों की पढ़ाई के कारण आती है, तबादलों के फेर में उनकी पढ़ाई काफी अव्यवस्थित हो जाती है।


तबादला/ट्रांसफर करवाने रुकवाने के टोटके

तबादला/ट्रांसफर करवाने रुकवाने के टोटके

लेकिन सभी के मन में यही प्रश्न उठता है कि इस असुविधा से छुटकारा कैसे पाया जाए? इसलिए हम आज आपको कुछ ऐसे तरीके बताएंगे जो ना सिर्फ आपको इन तबादलों की तकलीफों से मुक्त कराएंगे, बल्कि आपके जीवन को व्यवस्थित करने में आपकी सहायता भी करेंगे।


तबादला/ट्रांसफर रोकने का टोटका


यदि आपके शीर्ष अधिकारियों द्वारा आपका तबादला किसी ऐसी जगह करवाया जा रहा है, जो आपके अनुकूल नहीं है अथवा आपकी इच्छा के विपरीत है । तो फिर आप निम्नलिखित उपाय कीजिये । इन उपायों के माध्यम से आपका तबादला रुक जाएगा और आपको कहीं और जाने के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा:


1- इसके लिए आप रविवार का व्रत रख सकते हैं या रविवार के दिन सिर्फ मीठा भोजन करें और सूर्यदेव को ताम्बे के लोटे में जल अर्पित करें । जितना हो सके नमक का सेवन रविवार को ना करें शीघ्र ही अच्छी खबर प्राप्त होगी ।


2- साथ ही प्रतिदिन नहाने के बाद “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र की एक माला का जाप करें।


3- एक इस प्रकार का सिक्का लें जिसमें किसी चेहरे की आकृति बनी हुई हो, और उसे लेकर ऐसी गली में जाएं जो पूरी तरह सुनसान हो। यह सोचते हुए जाएं यह सोचें कि वह चेहरा उस आदमी या उस अधिकारी का है, जो आपका ट्रांसफर करा रहा है; और उस सिक्के को टॉस की तरह उछालें तथा उछालते वक्त मन में बोलें कि “जो ऊपर जा रहा है वह नीचे भी आएगा”। इस विधि को करते समय ध्यान रखें कि कोई आपको देख ना पाए।


4- ढाक जिसे पलाश भी कहते हैं, के पत्तों को लेकर एक कटोरी नुमा दोना बनाएं, इस दोने में सुर्ख गुलाब की पंखुड़ियों को भर दें तथा शाम के समय अपनी कामना मन में रख कर किसी नदी में प्रवाहित कर दें ।


मनचाहे स्थानांतरण के उपाय


यदि आप अपने वर्तमान नियुक्ति स्थल से प्रसन्न नहीं हैं अथवा आपकी पोस्टिंग किसी ऐसी जगह है , जहाँ आप सहज महसूस नहीं करते हैं; और किसी ऐसी विशेष जगह तबादला चाहते हैं जो आपकी पसंदीदा हो । तो अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए आप यह उपाय आजमा सकते हैं-


1- जब भी आप अपनी नौकरी पर जाने के लिए घर से निकलें, तो एक कटोरी दही को गुड़ के साथ खाएं । ऐसा निरंतर करने से आपके तबादले की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।


2- लगातार 21 दिन तक सूर्य देव को जल अर्पण करें, तथा अपने अधिकारी को कोई लाल रंग की वस्तु गिफ्ट करें । यदि अधिकारी को नहीं देना चाहें तो लाल रंग की कोई भी वस्तु किसी अन्य को दान करें।


3- रविवार के दिन लाल चंदन, ताम्बे का लोटा, गुड़, बिना छिलके की मसूर की दाल या गेहूं दान करें । इससे आपकी इच्छित जगह पर आपके तबादले के योग बनते हैं ।


4- अगर आप अपनी मनचाही जगह पर हैं और कहीं और तबादला होने से रोकना चाहते हैं तो 10 बड़े नींबू लेकर किसी बहती हुई नदी की धारा में अर्पित कर दें, मोकामना पूरी होगी।


मनोवांछित तबादला होने का उपाय/मंत्र:


यहाँ हम आपको कुछ मंत्र बता रहे हैं जिनकी साधना से आप अपने मनवांछित स्थल पर ट्रॉन्सफर करवा सकते हैं तथा अपनी पसंदीदा जगह पर स्थिर हो सकते हैं:


प्रतिदिन नहा धो कर पीले वस्त्र पहनें तथा एक आसन पर बैठ कर ध्यान लगाएं तथा

👉ॐ परमब्रह्म परमात्मने नमः उत्पत्ति-स्थिति-प्रलयं-कराय ब्रह्म हरिहराय,

त्रिगुणात्मने सर्व कौतुकानि दर्शय, दत्तात्रेयाय नमः (आपका नाम) सिद्धिं कुरू-कुरू स्वाहा।🌹


इस मंत्र का 21 बार जाप करें। पूजा समाप्त करने के उपरान्त भोजन कर लें, भोजन में यदि सम्भव हो तो गुड़ भी खाएं। यदि मीठे से परहेज है तो मसूर की दाल खाएं। इस विधि द्वारा मनवांछित स्थल पर नौकरी की मनोकामना की सिद्धि हो सकती है।🕉️


👉लगातार 21 दिन तक हर रोज नहाने के बाद एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें 108 लाल मिर्च के बीज डाल दें। और इस जल का अर्घ भगवान सूर्यदेव को दें, तथा अर्घ देते समय इस मंत्र का जाप करें

⭐ॐ घृणि सूर्याय आदित्याय नमः⭐


इस मंत्र के लगातार 21 दिनों तक जाप से मनोकामना पूरी होती है और मनचाही जगह नौकरी प्राप्त होती है।🌹


👉किसी भी शुक्रवार को प्रातः ब्रह्ममुहूर्त से पूर्व जागकर स्नान कर लें तथा इसके बाद दही या सफ़ेद मिठाई लेकर सात बार अपने ऊपर से ऊसार लें। ऐसा करते समय मन ही मन में साथ बार चंद्र देवता से प्रार्थना करें कि “हे चंद्र देव! मेरा स्थानांतरण (मनवांछित स्थान का नाम) पर करवा दीजिये। इसके बाद उस दही या मिठाई को सूर्योदय से पहले ही अपने घर के पास किसी चौराहे पर रख दें, जहाँ चन्द्रमा साफ़ नज़र आ रहा हो । अगर आपकी इच्छा पूरी हो जाए, तो उसी स्थान पर चन्द्रमा को खीर अर्पित करें।🕉️

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Friday, 6 August 2021

नवजात बेबी और शूभ मुहूर्त अनुष्ठान कब करें

 

नवजात शिशु से सम्बंधित शुभ महूर्त


 toy

जल पूजन

संतान होने के 26वें दिन या एक महीने बाद माता का संतान के साथ जाकर जल पूजन के शुभ महूर्त

वारसोमवार,बुधवार एवं गुरूवार
मासचैत्र, पौष और क्षय मॉस को छोड़कर सभी मास मान्य हैं
पक्षदोनों
तिथिद्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, नवमी, दशमी, द्वादशी , चतुर्दशी
नक्षत्रमृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त,  श्रवण

कर्ण वेध

वारसोमवार एवं बुधवार
मासक्षय मास, अधिक मास, मल मास त्याग कर जन्म से छठे या सातवें माह में.
पक्षशुक्ल
तिथिद्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी,सप्तमी, दशमी,द्वादशी
नक्षत्रअश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्र, अनुराधा,
श्रवण, रेवती
लग्नवृषभ, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु
विशेषजन्म से 12वें या 16वें दिन भी कर्ण वेध शुभ माना जाता है.  बालक का पहले दांया और फिर बांया और कन्या का पहले बांया और फिर दांया कान पूर्व दिशा की और मुख करके स्वर्णकार या सुहागिन स्त्री द्वारा  ही छेदना चाहिए

बालक के मुंडन हेतु शुभ महूर्त

वारसोमवार, बुधवार, गुरूवार और शुक्रवार शुभ हैं
मासचैत्र मास छोड़कर , जन्म से तीसरे, पांचवें, सातवें, या विषम वर्षों में.
पक्षशुक्ल
तिथिद्वितीया, तृतीया, पंचमी,सप्तमी एवं विशेष परिसिथियों में नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी एवं पूर्णिमा.
नक्षत्रअश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त,स्वाति, ज्येष्ठा, धनिष्ठा,  श्रवण, रेवती
लग्नशुभ लग्न
विशेषमाता के गर्भवती समय और रजस्वला के समय को त्यागना चाहिए.  यदि बालक पांच वर्ष से अधिक हो गया हो तो गर्भावस्था में भी मुंडन किया जा सकता है.  ज्येष्ठ मास में ज्येष्ठ  पुत्र का मुंडन निषेध है.

नामकरण संस्कार हेतु शुभ महूर्त

वारसोमवार, मंगलवार, गुरूवार और शुक्रवार शुभ हैं
माससभी
पक्षकृष्ण पक्ष
तिथिप्रथमा, द्वितीया, तृतीया,  सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी
नक्षत्रअश्विनी,  रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, श्रवण,धनिष्ठा और रेवती शुभ लग्न माने गये हैं.
लग्नवृषभ, कन्या, तुला
विशेषशुभ चन्द्रमा और चार लग्न में नामकरण शुभ माना
गया है.  अनिष्ट योग, ग्रहण, श्राद्ध, क्षय मास और
व्यतिपात में नामकरण नहीं करें.
विद्वानों के मतानुसार माता और पिता कुल की तीन पीढीयों में चले आ रहे नाम नहीं रखने चाहिए.

प्रथम बार अन्न प्राशन हेतु शुभ महूर्त

वारसोमवार, बुधवार, गुरूवार और शुक्रवार शुभ हैं
मासक्षय मास, मल मास, अधिक मास छोड़कर जन्म से
छठे, सातवें, आठवें, दसवें और बाहरवें महीने में.
पक्षशुक्ल पक्ष
तिथियाँद्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, द्वादशी
, त्रयोदशी,चतुर्दशी, पूर्णिमा
नक्षत्रअश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु,  उत्तराभाद्रपद,
उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ापुष्य,  हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा,श्रवण,धनिष्ठा,शतभिषा,  रेवती
लग्नवृषभ, मिथुन, कर्क, तुला, धनु, मकर
विशेषमध्याह्न पूर्व अन्न प्रशन शुभ मन गया है. क्षय
तिथि वर्जित है.

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राशि अनुसार विवाह के उपाय, तुरंत बनेंगे विवाह के योग।

आप में से कई लोग ऐसे होंगे, जो विवाह तो करना चाह रहे हैं लेकिन विवाह होने में कोई ना कोई परेशानी बनी रहती है। Jyotish Guru Mk, Astrology or...