Monday, 26 July 2021

नक्षत्र और उनके प्रकार शुभ/अशुभ कार्य

 स्वभाव के आधार पर नक्षत्रों को सात श्रेणियों में बाँटा गया है :

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१. स्थिर नक्षत्र : रोहिणी, उत्तर-फाल्गुनी,उत्तरा-आषाढ़, उत्तरा-भाद्रपद,(४,१२,२१,२६) ये चार नक्षत्र स्थिर होते हैं | भवन निर्माण, कृषि कार्य, ग्रह प्रवेश, नौकरी ज्वायन करना, उपनयन संस्कार आदि के लिए शुभ होते हैं |
२. चर(चंचल) नक्षत्र : पुनर्वशु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा,(७,१५,२२,२३,२४,) ये पांच नक्षत्र चर अथवा चंचल प्रकृति के होते हैं | मोटरकार चलाना या खरीदना, घुड़सवारी करना, यात्रा करना आदि गतिशील कार्यों के लिए शुभ रहते हैं |
३. क्रूर(उग्र) नक्षत्र : भरनी, मघा, पूर्वा-फाल्गुनी, पूर्वा-आषाढ़, पूर्वा-भाद्रपद, (२,१०,११,२०,२५) ये पांच नक्षत्र क्रूर अथवा उग्र प्रकृति के होते हैं | सर्जरी करना, भट्टे लगाना, अस्त्र-शस्त्र चलाना व्यापार करना, खोज कार्य करना, शोध कार्य करना, मारपीट करना, आग जलाना, आदि के लिए शुभ रहते हैं |
४. मिश्र (साधारण) नक्षत्र : कृतिका, विशाखा,(३,१६) ये दो नक्षत्र मिश्र अथवा साधारण प्रकृति के होते हैं | बिजली सम्बन्धी कार्य, दवाई बनाने का कार्य, लोहा भट्टी, गैस भट्टी, भाप इंजन आदि के कार्य करने शुभ रहते हैं |
५. लघु नक्षत्र : अश्विनी, पुष्य, हस्त,(१,८,१३,) ये तीन नक्षत्र लघु प्रकृति के होते हैं | नाटक, नौटंकी,रूपसज्जा, गायन, दूकान,शिक्षा,लेखन,प्रकाशन, आभूषण, आदि के कार्यों को करने के लिए शुभ रहते हैं |
६. मृदु (मित्रवत) नक्षत्र : मृगशिरा,चित्रा, अनुराधा, रेवती,(५,१४,१७,२७) ये चार नक्षत्र मृदु अथवा मित्रवत प्रकृति के होते हैं | कपडे बनाना, सिलाई कार्य,खेल, आभूषण बनवाना, सेवा कार्य,व्यापार,सत्संग आदि कार्य करना शुभ रहते हैं |
७. तीक्ष्ण (दारुण) नक्षत्र : आद्रा,आश्लेषा,ज्येष्ठा, मूल,(६,९,१८,१९) ये चार नक्षत्र तीक्ष्ण अथवा दुखदायी प्रकृति के होते हैं |लड़ाई-झगड़े करना, जानवरों को वश में करना, कोई हानिकारक कार्य करना, जादू-टोना करना आदि कार्य शुभ रहते हैं |
शुभाशुभ फल के आधार पर नक्षत्रों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है |
१. शुभ फलदायी नक्षत्र : १,४,८,१२,१३,१४,१७,२१,२२,२३,२४,२६,२७, कुल १३ नक्षत्र शुभ फलदायी होते हैं |
२. मध्यम फलदायी नक्षत्र : ५,७,१०,१६, कुल चार नक्षत्र मध्यम फलदायी होते हैं |
३. अशुभ फलदायी नक्षत्र : २,३,६,९,११,१५,१८,१९,२०,२५, कुल १० नक्षत्र अशुभ फलदायी होते हैं |
चोरी गयी वस्तु प्राप्ति अथवा अप्राप्ति के आधार पर नक्षत्रों को चार भागों में बाँटा गया है :
१. अंध लोचन नक्षत्र : ४,७,१२,१६,२०,२३,२७, ये सात अंध लोचन नक्षत्र कहलाते हैं | इन नक्षत्रों में खोई या चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में जाती या होती है एवं शीघ्र/ जल्दी मिल जाती है |
२. मंद लोचन नक्षत्र :१,५,९,१३,१७,२१,२४, ये सातनक्षत्र मंद लोचन नक्षत्र कहलाते हैं | खोई हुई वस्तु या चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में जाती या होती है एवं प्रयत्न करने पर मिल जाती है |
३. मध्य लोचन नक्षत्र :२,६,१०,१४,१८,२५, ये छः नक्षत्र मध्य लोचन नक्षत्र कहलाते हैं | इन नक्षत्रों में चोरी गई या खोई वस्तु दक्षिण दिशा में जाती या होती है तथा सूचना मिलने या मालूम होने पर भी नहीं मिलती है |
४. सुलोचन नक्षत्र :३,८,११,१५,१९,२२,२६, ये सात नक्षत्र सुलोचन नक्षत्र कहलाते हैं | इन नक्षत्रों में चोरी गई या खोई वस्तु उत्तर दिशा में जाती या होती है | उत्तर दिशा में जाने वाली वस्तु की न तो कोई जानकारी या सूचना मिलती है और न ही वो वस्तु वापिस मिलती है |

Thursday, 8 July 2021

छिपकिली के शुभ/अशुभ संकेत

 अगर आपके घर में छिपकली दिखाई देती है तो समझ लीजिए ये काम होने वाला है।


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आज हम आपको घर में दिखाई देने वाली छिपकली के बारे में बताने जा रहे हैं | इस लेख में आपको आपके सभी सवाल जैसे Ghar Mein Chipkali Kyu Aati Hai अगर घर में छिपकली दिखे तो क्या करना चाहिए पूजा घर में छिपकली का होना छिपकली की आवाज सुनने से क्या होता है Chipkali Ka Ghar Mein Aana Kaisa Hai सुबह-सुबह छिपकली देखना घर में छिपकली का बोलना छिपकली का घर में मरना घर में मरी हुई छिपकली देखना छिपकली का मल गिरना पॉटी करना पेशाब करना छिपकली का जमीन पर गिरना या जमीन पर चलाना छिपकली का घर में होना शुभ या अशुभ अगर घर में छिपकली दिखे तो क्या होता है, के जवाब दिए गए है | छिपकली का कौन सा रूप फलदायी होता है या छिपकली का घर में होने हमने भविष्य में होने वाली कौनसी घटना का संकेत देती है, ये जानने के लिए इस आर्टिकल को ध्यानपूर्वक पूरा पढ़े | ज्योतिष और वास्तु समाधान  🏠Vastu Guru_ Mk.✋

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Ghar Mein Chipkali Dikhai Dena

हमारे आसपास कई तरह के जीव जन्तु मौजूद होते हैं, जिनमें से कुछ तो बहुत ही डरावने होते हैं तो कुछ बहुत ही ज्यादा प्यारे लगते हैं | इनमे से कई जीव जन्तु हमारे घर में भी पाए जाते हैं, जिसमें छिपकली भी शामिल है | छिपकली लगभग हर घर में पाई जाती है | जाड़ो के मुक़ाबले गर्मियों में ये ज्यादा दिखाई पड़ती हैं | गर्मियों के मौसम में दिवार – दिवार पर छिपकली पाई जाती है, लेकिन ठंड के मौसम में छिपकली कहीं गुम हो जाती हैं और बहुत मुश्किल से दिखाई देती हैं | घर में छिपकली दिखाई देने के पीछे कई कारण होते हैं और वो आप इस लेख के अंत तक जान सकते है |

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अगर घर में छिपकली दिखे तो क्या करें

बहुत से लोगो के मन ये सवाल आते है की अगर घर में छिपकली दिखे तो क्या करना चाहिए अगर घर में छिपकली दिखे तो क्या होता है | आपको बतादे की घर में छिपकली का आना आम बात हैं | लगभग सभी के घर में छिपकली पाई जाती है | शास्त्रों में छिपकली को माता लक्ष्मी का प्रतिक बताया गया है | शकुन शास्त्र में छिपकली के दिखने और उससे जुडी गतिविधियों के बारे में विस्तृत जानकारी भी दी गई है | यहाँ तक की भारत के कुछ मंदिरों में छिपकली की पूजा तक भी जाती है | इसलिए अगर घर में छिपकली है तो हमे उनसे डरना नहीं चाहिए और ना ही कमरे / घर से बाहर निकलना चाहिए ।

छिपकली का घर में होना शुभ या अशुभ संकेत

छिपकली से मिलने वाले कई संकेत हमे भविष्य में होने वाली घटनाओ के बारे में बताते है | शास्त्र के अनुसार छिपकली का किसी विशेष समय पर दिखना, जमीन पर या शरीर पर गिरना भविष्य की शुभ-अशुभ घटनाओं का संकेत होता है | अगर आप जानना चाहते है की छिपकली का घर में होना कौनसे शुभ और अशुभ संकेत देती है | 

जानकारी यहाँ पढ़े

अगर आपको दीवाली की रात घर में छिपकली दिख जाए तो यह आपको आने वाले पूरे साल साल में किसी भी प्रकार की पैसों की कमी नही होगी | आपके जीवन मे सुख समृद्धि सदैव ही बनी रहेगी |

छिपकली की आवाज सुनने से क्या होता है : छिपकली की आवाज सुनना संभव नहीं है, फिर भी अगर भोजन करने के दौरान छिपकली का बोलना सुनाई दे जाए तो कोई शुभ समाचार या शुभ फल की प्राप्ति होती है |

छिपकली का आपस में लड़ना : छिपकली का आपस में लड़ना शुभ नहीं होता है | अक्सर ऐसा होते दिखाई देने पर घर के सदस्यों का आपस में अथवा दूसरों के साथ झगड़ा या मतभेद होता है

नर और मादा छिपकलियों का समागम : अगर छिपकली आपको समागम दिख जाए तो जरूर आपका कोई पुराना मित्र मिलने वाला हैं | नर और मादा छिपकलियों का समागम किसी पुराने मित्र या परिचित से मिलन की संभावना को बताता है |

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अगर घर में छिपकली दिखे तो क्या करना चाहिए : अगर आपको घर में छिपकली दिख जाए तो तुरंत मंदिर में या भगवान की मूर्ति के पास रखा कंकू-चावल ले आएं और इसे दूर से ही छिपकली पर छिड़क दें | ये काम करते समय अपने मन की किसी मुराद को भी मन ही मन बोलें और यह कामना करें कि वह पूरी हो जाए | शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि छिपकली की पूजा से धन सम्बन्धी समस्याएं खत्म है और धन प्राप्ति के नए मार्गों की प्राप्ति होती है |

नए घर में छिपकली के दर्शन होने के संकेत : अगर आपको नए घर में कोई छिपकली दिख जाए तो इसका सीधा-सीधा मतलब होता है कि उस घर का गृह स्वामी बीमार पड़ने वाला है, इसलिए आप कोशिश करें कि जब कभी-भी आप नए घर में दस्तक दें तो आपको छिपकली के दर्शन न हो |

घर में छिपकली आने के अच्छे बुरे संकेत  यदि आप सपने में छिपकली को शिकार करते हुए, कीड़े-मकोड़े खाते या हमला करते हुए या सपने में छिपकली को मारना छिपकली से डरना या रेंगती हुई छिपकली के सपने आते है तो बहुत ही अशुभ माने जाते है क्योकि ये सभी संकेत भविष्य में होने वाले अशुभ कार्यो या घटनाओ को दर्शाते है और अगर आप सपने में छिपकली को पकड़ते है या छिपकली आपसे डरती हुई दिखाई देती है तो ये शुभ कार्यो के संकेत होते है | इसका यह मतलब होता है की आपको भविष्य में जल्द ही शुभ समाचार या आपके साथ अच्छा होगा |

पूजा घर में छिपकली का होना : छिपकली को माँ लक्ष्मी का प्रतिक माना जाता है | इसलिए पूजा घर में छिपकली का होना बेहद शुभ माना जाता है |

सुबह-सुबह मरी हुई छिपकली देखना : मरी हुई छिपकली का बार-बार दिखना राहु के अशुभ होने का संकेत माना गया है |

घर में छिपकली का बोलना : यदि आपको छिपकली का बोलना सुनाई दे तो समझ जाइएगा कि आपको कोई शुभ समाचार सुनाई देने वाला है अन्यथा आपको कोई शुभ प्रतिफल प्राप्त होने वाला है |

छिपकली का मल गिरना पॉटी करना पेशाब करना : छिपकली के मल और इसके लार में सल्मोनेला नाम का एक बैक्टीरियम होता है, जिससे फूड प्वायजनिंग का खतरा बहुत ज्यादा होता है। आपने अक्सर सुना होगा कि खाने में छिपकली के गिरने से और उस खाने को खाने से लोगों की मौत हो जाती है या तबीयत खराब हो जाती है

छिपकली का जमीन पर गिरना या जमीन पर चलना : जमीन पर छिपकली का चलना भविष्य में होने वाली घटनाओं की तरफ इशारा करता है और भविष्य में होने वाली घटनाओं को प्रभावित भी करता है। इस तरह की हरकत जब छिपकली करती है तो व्यक्ति के जीवन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है

छिपकली का घर में होना शुभ या अशुभ : छिपकली माँ लक्ष्मी का प्रतिक है इसलिए घर में छिपकली का होना अशुभ नहीं मन जाता है |

नए घर में प्रवेश करते समय यदि गुहस्वामी को छिपकली मरी हुई व मिट्टी लगी हुई दिखाई दे तो उसमें निवास करने वाले लोग रोगी हो सकते हैं। इस अपशकुन से बचने के लिए पूरे विधि विधान से पूजन करने के बाद ही नए घर में प्रवेश करना चाहिए

अगर छिपकली किसी भी कीड़े या फतिंगे पर झपट्टे तो समझ लीजिये की घर में चोरी हो सकती है

अगर आप कहीं बाहर जा रहे हैं और आपको छिपकली की पूर्व, उत्तर, ईशान दिशाओं में आवाज सुनाई दे तो आपके लिए यह शुभ संकेत है | माना जाता है कि आपको धन की प्राप्ति होती है और नौकरी पेशा लोगों को प्रमोशन का अवसर प्राप्त होता है |

अगर छिपकली की तीसरे और चौथे प्रहर में पूर्व दिशा की ओर आवाज सुनाई तो यह आपके लिए शुभ संकेत है, धन की प्राप्ति होती है और व्यापारी के व्यापार में वृद्धि आने लगती है |

छिपकली के शरीर पर गिरने के शुभ और अशुभ संकेत 

शकुन शास्त्र के अनुसार छिपकली के शरीर पर गिरने को भी शकुन/अपशकुन माना जाता है | स्त्री के शरीर के बायें भाग पर, पुरुष के शरीर के दाहिनी तरफ गिरना शुभ होता है | इसी प्रकार छिपकली का नीचे से ऊपर की ओर चढ़ना शुभ और ऊपर से नीचे की ओर गिरना अशुभ माना जाता है | आइये जानते है की शारीर के कौनसे हिस्से / अंग पर छिपकली का गिरना क्या संकेत देता है |

Chipkali Ke Sanket छिपकली का शरीर पर गिरने के शुभ संकेत / शकुन

माथे पर छिपकली के गिरने से धन मिलने की संभावना बढ़ती है |

दाहिने कान पर छिपकली के गिरने से गहनों की प्राप्ति होती है |

बायें कान पर गिर जाए तो आयु में वृद्धि होती है |

छिपकली का नाक पर गिरना भाग्‍योदय का संकेत होता है |

मुख पर छिपकली गिरना स्वादिष्ट खाने की प्राप्ति होती है |

यदि छिपकली बायें गाल में गिरे तो पुराने मित्र से भेंट होती है |

दाहिने गाल में गिरे तो आयु में बढ़ोतरी होती है |

गर्दन पर छिपकली गिरे तो प्रसिद्धि मिलती है |

दाहिनी आंख पर छिपकली का गिरना मित्र से भेंट का संकेत है |

पीठ के दाहिनी ओर छिपकली का गिरना सुख की प्राप्ति का संकेत है |

छिपकली दाहिने कंधे पर गिरे तो जीत हासिल होती है |

हाथ के दाहिने ओर यानि दाहिनी भुजा पर छिपकली का गिरना शीघ्र लक्ष्मी प्राप्ति होना माना जाता है |

छिपकली का सीने के दाहिने भाग पर गिरना खुशियों के आगमन माना जाता है |

यदि छिपकली पेट पर गिरे तो गहनों की प्राप्ति होती है |

कमर के बीच में छिपकली गिरने पर आर्थिक लाभ होता है |

नाभि पर छिपकली के गिरने से इच्छाएं / मनोकामनाए पूरी होती है |

Chipkali Ke Sharir Par Girane Ke Shubh Ashubh Sanket

छिपकली के दाहिनी जांघ पर गिरने से सुख मिलता है |

दाहिने घुटने पर छिपकली के गिरने से यात्रा का मौका मिलता है |

दाहिने पैर पर छिपकली गिरना यात्रा लाभ देता है |

मूंछ पर छिपकली गिरना यानि सम्मान की प्राप्ति होना |

कंठ पर छिपकली गिरने का मतलब शत्रुओ का नाश होगा |

दाहिनी हथेली पर छिपकली गिरने से कपडे मिलते है |

दाहिनी जांघ पर छिपकली गिरने से सुख मिलता है |

दाएं पैर के तलवे पर छिपकली गिरने का मतलब ऐश्वर्य की प्राप्ति है |

घर की छत पर रेंगती हुई छिपकली किसी व्यक्ति की छाती पर गिरे तो स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति होती है |

घर में दीवारों पर रेंगती छिपकली अगर किसी व्यक्ति के घुटनों को छूकर नीचे गिर जाती है तो यह इस बात का संकेत होता है कि उस व्यक्ति के जीवन में आने वाले दिनों में बहुत सारी खुशियाँ मिलने वाली हैं |

पीठ के बीच में छिपकली गिरने पर घर में बड़ा क्लेश होता है |

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छिपकली का शारीर पर गिरने के शुभ संकेत / अपशकुन

बालों पर छिपकली का गिरना मौत आने का संकेत माना जाता है |

बायीं आंख पर गिरने से शीघ्र बड़ी हानि का सामना करना पड़ सकता है |

पीठ के मध्य छिपकली के गिरने से घर में विरोध होता है |

पीठ के बायीं और गिरना बीमारियों के आगमन का संकेत माना जाता है |

छिपकली बायीं ओर कंधे पर गिरने से नए दुश्मन बनते हैं |

बाएं पैर के तलवे पर गिरने पर व्यापार में नुकसान उठाना पड़ता है |

हाथ के बायीं ओर यानि बायीं भुजा पर छिपकली के गिरने से धन छिन जाने की चिंता बढ़ जाती है |

छिपकली का सीने के बायें भाग पर गिरना घर में ज्यादा कलह होने का संकेत है |

Chipkali Ke Sharir Par Girane Ke Shubh Ashubh Sanket

छिपकली के बायीं जांघ पर गिरने से शारीरिक कष्ट होता है |

बायें घुटने पर छिपकली के गिरने पर तो बुद्धि हानि होती है |

बाये पैर पर छिपकली गिरने से घर में कलह, दुख, बीमारी और व्यापर में हानि होती है |

दाढ़ी पर छिपकली गिरने से किसी बड़े और भयावह संकट का सामना करना पड़ सकता है |

भौंह पर छिपकली गिरना यानि धन हानि |

बाई हथेली पर छिपकली गिरने से धन की हानि होती है |

बाई जांघ पर छिपकली गिरने से दुःख ही दुःख यानि शाररिक पीड़ा होती है |

घर की छत पर रेंगती हुई छिपकली किसी सोते हुए या लेटे व्यक्ति की पेट पर आकर गिरे तो उक्त व्यक्ति निकट भविष्य में

कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है |

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Monday, 5 July 2021

हस्थरेखा और अपनी जन्म तारीख समय ज्ञात करें

 

जन्म समय आपके हाथ पर लिखा है ®

हाथ पर लिखा

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हथेली पर जन्म तारीख

कभी कभी किसी कारणवश जन्म तारीख और दिन माह वार आदि का पता नही होता है,कितनी ही कोशिशि की जावे लेकिन जन्म तारीख का पता नही चल पाता है,जातक को सिवाय भटकने के और कुछ नही प्राप्त होता है,किसी ज्योतिषी से अगर अपनी जन्म तारीख निकलवायी भी जावे तो वह क्या कहेगा,इसका भी पता नही होता है,इस कारण के निवारण के लिये आपको कहीं और जाने की जरूरत नही है,किसी भी दिन उजाले में बैठकर एक सूक्षम दर्शी सीसा लेकर बैठ जावें,और अपने दोनो हाथों बताये गये नियमों के अनुसार देखना चालू कर दें,साथ में एक पेन या पैंसिल और कागज भी रख लें,तो देखें कि किस प्रकार से अपना हाथ जन्म तारीख को बताता है।

अपनी वर्तमान की आयु का निर्धारण करें

हथेली मे चार उंगली और एक अगूंठा होता है,अंगूठे के नीचे शुक्र पर्वत,फ़िर पहली उंगली तर्जनी उंगली की तरफ़ जाने पर अंगूठे और तर्जनी के बीच की जगह को मंगल पर्वत,तर्जनी के नीचे को गुरु पर्वत और बीच वाली उंगली के नीचे जिसे मध्यमा कहते है,शनि पर्वत,और बीच वाली उंगले के बाद वाली रिंग फ़िंगर या अनामिका के नीचे सूर्य पर्वत,अनामिका के बाद सबसे छोटी उंगली को कनिष्ठा कहते हैं,इसके नीचे बुध पर्वत का स्थान दिया गया है,इन्ही पांच पर्वतों का आयु निर्धारण के लिये मुख्य स्थान माना जाता है,उंगलियों की जड से जो रेखायें ऊपर की ओर जाती है,जो रेखायें खडी होती है,उनके द्वारा ही आयु निर्धारण किया जाता है,गुरु पर्वत से तर्जनी उंगली की जड से ऊपर की ओर जाने वाली रेखायें जो कटी नही हों,बीचवाली उंगली के नीचे से जो शनि पर्वत कहलाता है,से ऊपर की ओर जाने वाली रेखायें,की गिनती करनी है,ध्यान रहे कि कोई रेखा कटी नही होनी चाहिये,शनि पर्वत के नीचे वाली रेखाओं को ढाई से और बृहस्पति पर्वत के नीचे से निकलने वाली रेखाओं को डेढ से,गुणा करें,फ़िर मंगल पर्वत के नीचे से ऊपर की ओर जाने वाली रेखाओं को जोड लें,इनका योगफ़ल ही वर्तमान उम्र होगी।

अपने जन्म का महिना और राशि को पता करने का नियम

अपने दोनो हाथों की तर्जनी उंगलियों के तीसरे पोर और दूसरे पोर में लम्बवत रेखाओं को २३ से गुणा करने पर जो संख्या आये,उसमें १२ का भाग देने पर जो संख्या शेष बचती है,वही जातक का जन्म का महिना और उसकी राशि होती है,महिना और राशि का पता करने के लिये इस प्रकार का वैदिक नियम अपनाया जा सकता है:-

१-बैशाख-मेष राशि

२.ज्येष्ठ-वृष राशि

३.आषाढ-मिथुन राशि

४.श्रावण-कर्क राशि

५.भाद्रपद-सिंह राशि

६.अश्विन-कन्या राशि

७.कार्तिक-तुला राशि

८.अगहन-वृश्चिक राशि

९.पौष-धनु राशि

१०.माघ-मकर राशि

११.फ़ाल्गुन-कुम्भ राशि

१२.चैत्र-मीन राशि

इस प्रकार से अगर भाग देने के बाद शेष १ बचता है तो बैसाख मास और मेष राशि मानी जाती है,और २ शेष बचने पर ज्येष्ठ मास और वृष राशि मानी जाती है।

हाथ में राशि का स्पष्ट निशान भी पाया जाता है

प्रकृति ने अपने द्वारा संसार के सभी प्राणियों की पहिचान के लिये अलग अलग नियम प्रतिपादित किये है,जिस प्रकार से जानवरों में अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार उम्र की पहिचान की जाती है,उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में दाहिने या बायें हाथ की अनामिका उंगली के नीचे के पोर में सूर्य पर्वत पर राशि का स्पष्ट निशान पाया जाता है। उस राशि के चिन्ह के अनुसार महिने का उपरोक्त तरीके से पता किया जा सकता है।

पक्ष और दिन का तथा रात के बारे में ज्ञान करना

वैदिक रीति के अनुसार एक माह के दो पक्ष होते है,किसी भी हिन्दू माह के शुरुआत में कृष्ण पक्ष शुरु होता है,और बीच से शुक्ल पक्ष शुरु होता है,व्यक्ति के जन्म के पक्ष को जानने के लिये दोनों हाथों के अंगूठों के बीच के अंगूठे के विभाजित करने वाली रेखा को देखिये,दाहिने हाथ के अंगूठे के बीच की रेखा को देखने पर अगर वह दो रेखायें एक जौ का निशान बनाती है,तो जन्म शुक्ल पक्ष का जानना चाहिये,और जन्म दिन का माना जाता है,इसी प्रकार अगर दाहिने हाथ में केवल एक ही रेखा हो,और बायें हाथ में अगर जौ का निशान हो तो जन्म शुक्ल पक्ष का और रात का जन्म होता है,अगर दाहिने और बायें दोनो हाथों के अंगूठों में ही जौ का निशान हो तो जन्म कृष्ण पक्ष रात का मानना चाहिये,साधारणत: दाहिने हाथ में जौ का निशान शुक्ल पक्ष और बायें हाथ में जौ का निशान कृष्ण पक्ष का जन्म बताता है।

जन्म तारीख की गणना

मध्यमा उंगली के दूसरे पोर में तथा तीसरे पोर में जितनी भी लम्बी रेखायें हों,उन सबको मिलाकर जोड लें,और उस जोड में ३२ और मिला लें,फ़िर ५ का गुणा कर लें,और गुणनफ़ल में १५ का भाग देने जो संख्या शेष बचे वही जन्म तारीख होती है। दूसरा नियम है कि अंगूठे के नीचे शुक्र क्षेत्र कहा जाता है,इस क्षेत्र में खडी रेखाओं को गुना जाता है,जो रेखायें आडी रेखाओं के द्वारा काटी गयीं हो,उनको नही गिनना चाहिये,इन्हे ६ से गुणा करने पर और १५ से भाग देने पर शेष मिली संख्या ही तिथि का ज्ञान करवाती है,यदि शून्य बचता है तो वह पूर्णमासी का भान करवाती है,१५ की संख्या के बाद की संख्या को कृष्ण पक्ष की तिथि मानी जाती है।

जन्म वार का पता करना

अनामिका के दूसरे तथा तीसरे पोर में जितनी लम्बी रेखायें हों,उनको ५१७ से जोडकर ५ से गुणा करने के बाद ७ का भाग दिया जाता है,और जो संख्या शेष बचती है वही वार की संख्या होती है। १ से रविवार २ से सोमवार तीन से मंगलवार और ४ से बुधवार इसी प्रकार शनिवार तक गिनते जाते है।

जन्म समय और लगन की गणना

सूर्य पर्वत पर तथा अनामिका के पहले पोर पर,गुरु पर्वत पर तथा मध्यमा के प्रथम पोर पर जितनी खडी रेखायें होती है,उन्हे गिनकर उस संख्या में ८११ जोडकर १२४ से गुणा करने के बाद ६० से भाग दिया जाता है,भागफ़ल जन्म समय घंटे और मिनट का होता है,योगफ़ल अगर २४ से अधिक का है,तो २४ से फ़िर भाग दिया जाता है।

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और दूसरे तरीके से समझते हैं।

हस्तरेखा से अनुमानित आयु की गणना  


हस्त परीक्षण के समय तक मनुष्य के जीवन में कितनी घटनाएं घटित हो चुकी हैं और कितनी आने वाले समय में घटित होंगी, इसका सटीक कथन करने के लिए उसकी वर्तमान आयु की गणना कार्य में प्रवीण् ाता प्राप्त कर लेना उचित होगा। इस कार्य में निपुण होने तक उसकी आयु और उसके उत्तर को अनुमान का आधार बनाना ही उचित रहता है। सभी मनुष्य अपनी ठीक आयु नहीं बता पाते हैं परंतु सही आयु के आस-पास की जानकारी अवश्य दे देते हैं। इस कच्चे अनुमान को हाथ की त्वचा, रेखा और रंगत एवं संगति इत्यादि के साथ देखकर सही आयु की गणना सरलता से की जा सकती है। हस्त परीक्षण करते समय आयु गणना करने का एक सुलभ सूत्र यह है कि मनुष्य की जीवन रेखा को ऊपर से नीचे की ओर बारंबार दबाया जाये तो रक्त प्रवाह की लालिमा में क्षण मात्र के लिए एक सफेद बिंदु सा उभरता है। यह बिंदु हाथ की सटीक आयु दर्शाने वाले स्थान पर होता है। किंतु यह प्रयोग कमरे का तापमान अनुकूल होने पर ही विशुद्ध परिणाम देता है। परिस्थितिवश भिन्नताओं के होने पर परिणामों में परिवर्तन भी आ सकता है।

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अतः इस साधन को हमेशा आयु का सही अनुमान लगाने वाला नहीं माना जा सकता। इस संभावना का कसौटी पर खरा उतरना हस्तरेखा के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। हस्तरेखाओं को जीवन की वास्तविक दिशादर्शक मानने पर रेखाओं के भिन्न-भिन्न अंशों से यह संकेत प्राप्त हो जाता है कि उसका संबंध जीवन के निम्न भागों से है। प्रयोगों से स्पष्ट हो चुका है कि रेखा जहां से शुरू होती है, वह स्थान आरंभिक वर्षों का हिसाब रखता है तथा आगे का वर्षवार लेखा-जोखा उसमें जुड़ता जाता है। अतः रेखाओं के प्रांरभिक स्थान की जानकारी होना आवश्यक है। किस आयु में क्या-क्या घटनाएं घटी हैं या घटने वाली हंै इस बात को ठीक-ठीक बता पाने की कुशलता पूरी तरह हस्तरेखाविद् की तीक्ष्ण दृष्टि एवं सही परख पर निर्भर करती है। कुछ हस्तरेखाविद् एक वर्ष के भीतर घटित या घटने वाली घटना को बता सकते हैं किंतु ऐसे बहुत ही कम लोग हैं, जिन्होंने ऐसी कुशलता प्राप्त कर ली है। हस्तरेखा शास्त्र के नियमों की पूर्ण रूप से जानकारी रखने वाला व्यक्ति अधिक से अधिक इतना ही बता सकता है कि किस वर्ष में कौन सी घटना घटित होगी।

घटना घटित होने के महीने या दिन को बता पाना असंभव है। केवल हाथ को देखकर किसी व्यक्ति का नाम या उसके नाम का आद्यक्षर बताना भी संभव नहीं है। गौण घटनाओं या दैनिक जीवन के चिह्न व्यक्ति के हाथों में नहीं उभरते। हाथ में बना जीवन का मानचित्र केवल महत्वपूर्ण घटनाओं, गंभीर बीमारी, दशा परिवर्तन, गंभीर संकट, बड़ी खुशियों या खतरों या गहन प्रभाव डालने वाली घटनाओं या मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ने वाले अथवा जीवन की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने वाले व्यक्तियों को ही दर्शाता है। रेखाओं से आयु की गणना करते समय सर्वप्रथम मनुष्य की औसत आयु पर विचार करना चाहिए। व्यक्ति की 100 वर्ष या उससे अधिक मापने वाले मापदंड निश्चित करना त्रुटिपूर्ण है; क्योंकि यह देखा गया है कि लोग बहुधा इतनी आयु तक नहीं पहुंच पाते। जीवन रेखा का विभाजन गुरु अंगुली के नीचे, रेखा के प्रारंभ होने के स्थान से शुरू होता है तथा मणिबंध पर समाप्त होता है (देखिये चित्र क्रमांक 1 आयु गणना हेतु जीवन रेखा का विभाजन), मध्यवर्ती खंडों में जीवन के विभिन्न वर्षों का रिकार्ड रहता है। रेखा के परीक्षण में सुविधा एवं शीघ्रता की दृष्टि से रेखा को मध्य बिन्दु से विभाजित करके केंद्र बिंदु पर छत्तीस वर्ष की आयु निर्धारित की गई है जो सत्तर की लगभग आधी है। इस केंद्र बिंदु के ऊपर के स्थानों में दिए गये रेखा चित्र में चार, छः, बारह, अठारह, चैबीस तीस वर्षों में और केतु बिंदु के बाद के भाग को तैतालीस, इक्यावन, साठ और सत्तर वर्षों की आयु बताने वाले खंडों में बांटा गया है। इस तारीख तक पहुंचने के लिए चार से लेकर सत्तर वर्षों की आयु के बीच एक-एक वर्ष की कालावधि में समय का विभाजन करना आवश्यक है।

कींचित अभ्यास के पश्चात रेखा पर 4, 6, 12, 18, 24, 30, 36, 43, 51, 60 और 70 वर्ष की आयु का पता लगाना आसान हो सकता है। ऐसे अभ्यास से इन कालावधियों की शीघ्र और ठीक-ठीक पढ़ने की जानकारी प्राप्त हो जायेगी। भविष्यकथन करने के स्थान पर हाथ में आयु का कोई चिह्न न दिखाई देने की स्थिति में उस रेखा को ही वर्षों में विभाजित करके इस विधि के अनुसार सही तिथि निकाली जा सकती है। रेखा को पेंसिल से चिह्नित किए बिना खाली हाथ का निरीक्षण करते समय हाथ की लंबाई या छोटे होने की स्थिति को ध्यान में रखकर लंबाई के अनुपात में केंद्रबिंदु पर छत्तीस वर्ष की आयु मानकर कई स्थानों को मन में निश्चित करना आवश्यक है। याद रहे कि लंबे हाथ में प्रत्येक छः वर्ष की अवधि के मध्य अधिक और छोटे हाथ में कम अंतराल होता है। जीवन रेखा का इस तरह विभाजन करना अन्य सभी प्रकार के विभाजन की तुलना में अधिक शुद्ध एवं सही पाया गया है। यद्यपि परिणामों की शुद्धता हस्तरेखा शास्त्री के सटीक अनुमान पर निर्भर करेगी तथापि पर्याप्त परिश्रम करने पर वास्तविक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा पर चिह्नित घटनाएं जीवन रेखा के चिह्नों द्वारा प्रासंगिक हैं या नहीं, यह जानने के लिए कालावधियों को पढ़ना उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इन रेखाओं से कालावधि का अनुमान लगाने के नियमों का पालन करना और जीवन रेखा पर लागू होने वाली टिप्पणियों एवं तर्कों को इन रेखाओं के लिए प्रासंगिक मानना आवश्यक है। जीवन रेखा गुरु की अंगुली के नीचे से आरंभ होती है और उसकी दिशा हाथ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक होती है। रेखाएं भिन्न-भिन्न दिशाओं में जाती हैं।

इसलिए कालावधियों की गणना को सुविधाजनक बनाने के लिए एक काल्पनिक रेखा को आधारवत् लेना उपयोगी रहता है। इस रेखा को गुरु पर्वत के मध्य से प्रारंभ कर हाथ के पार तक जाने की कल्पना की जाती है। हृदय रेखा या मस्तिष्क रेखा का निरीक्षण करते समय इस काल्पनिक रेखा (देखिए चित्र क्रमांक 2 आयु गणना (काल्पनिक रेखा के आधार पर) पर पूर्ववत् 6 से 70 वर्षों की अवधियां अंकित की जाती हैं और इन अवधि खंडों को पढ़ने से निकलने वाली आयु बिल्कुल सही पायी जाती है। इससे अधिक पास की तिथियां देखने के लिए हृदय या मस्तिष्क रेखाओं को एक वर्ष दर्शाने वाली कालावधियों में विभाजित किया जाता है और ठीक वही प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसका उल्लेख जीवन रेखा के संबंध में किया गया है। उपर्युक्त माप तालिकाओं का सही तरह से उपयोग करने से ये सटीक परिणाम देती हैं। शनि रेखा पर आयु को नीचे से ऊपर की ओर पढ़ा जाता है। (देखिए चित्र क्रमांक तीन शनि रेखा का आधार) मणिबंध से मस्तिष्क रेखा तक का स्थान 0 से 30 वर्ष, मस्तिष्क रेखा से हृदय रेखा तक 30 से 45 वर्ष और हृदय रेखा से शनि की अंगुली तक 70 वर्ष की आयु बताने वाली कालावधियों में विभाजित कर दिया जाता है। इन तीन सामान्य उप-विभाजनों को ध्यान में रखकर प्रमुख कालावधियां पढ़ने की कला शीघ्र आ जाती है। एक वर्ष के भीतर के किसी समय को जानने के लिए रेखा को चिह्नित करके ठीक जीवन रेखा की तरह ही पढ़ा जाता है। मस्तिष्क और हृदय रेखाएं हाथ के आर-पार जिन अलग-अलग दिशाओं से जाती हैं, उन्हें शनि रेखा सदा एक ही स्थान पर नहीं काटती। यदि वे अनुचित दिशाओं में चली जाएं तथा उसके फलस्वरूप कोई चैड़ा या संकीर्ण चतुष्कोण बन जाये तो उनके बीच का अंतराल 30 से 45 वर्ष की आयु दर्शाने वाला नहीं होगा और सही तिथियां जानने के लिए शनि की पूरी रेखा की माप लेनी होगी।

सूर्य रेखा को नीचे से ऊपर की ओर उसी तरह पढ़ा जाता है जैसे शनि रेखा को और वही नियम एवं माप इस पर भी लागू होते हैं जो शनि रेखा को पढ़ने के लिए लागू होते हैं और सटीक तिथियां निकालने का उपाय भी दोनों का एक ही है। (देखिए चित्र क्रमांक चार सूर्य रेखा का आधार)। बुध रेखा को नीचे से ऊपर की ओर पढ़ा जाता है (देखिए चित्र क्रमांक 5 बुध रेखा का आधार) वही माप और वे ही नियम इसके लिए प्रासंगिक हैं जो अन्य रेखाओं पर लागू होते हैं सिवाय इसके कि यह रेखा लंबाई में छोटी होने के कारण कालावधियों हेतु लगाए जाने वाले चिह्नों के बीच की दूरी बहुत ही कम होती है क्योंकि उनके चिह्न पास-पास होते हैं। आयु को इस रेखा पर पढ़ना प्रायः वांछनीय होता है क्योंकि जीवन रेखा के संबंध में यह रेखा बहुत ही महत्वपूर्ण है। आकस्मिक रेखाओं पर आयु को पढ़ना आवश्यक नहीं है।

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ये रेखाएं मुख्य रेखाओं को काटने वाली, उनसे आरंभ होने वाली या उनके इतने समीप होती हैं कि आकस्मिक रेखा पर दी हुई आयु को मुख्य रेखा द्वारा पढ़ा जा सकता है। जीवन के स्वाभाविक मानचित्र में होने वाले परिवर्तनों या संभावनाओं को प्रकट करने वाली ऐसी आकस्मिक रेखाएं कई दिशाओं की ओर जाती हैं और ऐसे अप्रत्याशित स्थानों से प्रारंभ होती हंै कि उन पर आयु को पढ़ने का कोई नियम नहीं बनाया जा सकता तथापि मुख्य रेखाओं की गणना के आधार पर इनसे भी सही तिथियां निकाली जा सकती हैं। हस्तरेखा शास्त्र के किसी भी भाग के लिए इतना अभ्यास आवश्यक नहीं जितना की तिथियों को जानने के लिए। पहले-पहले अनेक असफलताएं प्राप्त होंगी किंतु ऐसी असफलताएं नियमों के कारण नहीं बल्कि अभ्यास कार्य में लगे व्यक्ति की ग्रहण शक्ति कम रहने के कारण होगी। बीमारी के बारे में निरीक्षण करते समय न केवल जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा व बुध रेखा तथा पर्वतों की जांच भी की जाती है अपितु उनकी तिथियों का भी इन रेखाओं से अंकित विधियों के साथ मिलान किया जाता है।

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